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(३) द्रव्य निक्षेप (४) भाव निक्षेप
'निक्षेप' एक पारिभाषिक शब्द होने के कारण हमे इसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। निक्षेप अर्थात् विभाग। किसी भी वस्तु के चार विभाग होते है, एक तो 'सज्ञा' अथवा नाम दूसरा'प्राकृति' तीसरा 'दल' और चौथा 'भाव' अर्थात् गुण धर्म तथा प्राचार। इन चारो मे से किसी एक का सम्बन्ध किसी वस्तु के साथ जोडना 'निक्षेप करना' कहलाता है।
किसी भी शब्द मे जव अमुक अर्थ का सम्बन्ध जोडा जाता है तब, अथवा किसी अर्थ मे जब अमुक शब्द का सवन्ध जोडा जाता है तव जैन तत्ववेता उसे 'निक्षेप'कहते है। हम किसी भी पदार्थ को कोई नाम देते है, उसे पहचानने की कोई सज्ञा निश्चित करते है, फिर मूल शब्द के साथ उसका जो सम्बन्ध जोडते है उसे 'नाम निक्षेप करना' कहते है। अग्रेजी मे इसे 'Named Substance' कहते है। हम इसे अपनी भापा मे 'नामाभिधान' अथवा 'नामकरण' भी कह सकते है।
'निक्षेप'को 'शब्द का अर्थकरण' भी कह सकते है। इसमे खूबी यह है कि किसी शब्द के चाहे कितने ही अर्थ किये जायें, कम-से-कम उपर्युक्त चार निक्षेपो-नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव के द्वारा उसका अर्थ अवश्य निकाला या समझा जा सकता है।
यो तो निक्षेप केवल तीन अक्षरो का पारिभापिक शब्द है । यदि इसका ऊपर बताया हुआ अर्थ हम अच्छी तरह समझ ले तो हम इसके लिये विस्तृत शब्दावलि का प्रयोग करने