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पर एव उसके मार्ग पर प्रकाश डालने वाले तथा शुद्ध तत्त्व के प्रतिपादक होते है। ___ जैन तत्त्वज्ञानियो ने आगम प्रमाण को सिद्ध प्रमाण माना है, क्योकि जिन्होने यह ज्ञान दिया है वे वीतराग सर्वज्ञ भगवान् थे। उन्होने पूर्णज्ञान-केवलज्ञान-प्राप्त करने के बाद ही यह जान दिया है, और उन्होने दिया है, यही एक बडा प्रमाण है। राग, द्वेष और अज्ञान-ये असत्य के सभाव्य कारण हैं । इनके दूर हो जाने के बाद असत्य बोलने की गुजाइश-सभावना ही नही रहती । अत जो वीतराग एव सर्वज्ञ थे उन्होने जो कुछ भी कहा है वह जगत् के हित के एक मात्र उद्देश्य मे ही कहा है।
शायद कोई ऐसा प्रश्न पूछेगा कि वे सर्वज ही थे इसका क्या निश्चय है ? और इसका भी क्या निश्चय है कि उन्होने जो कुछ कहा सो सब सच ही है ?
जिनकी बुद्धि का पर्याप्त विकास हुआ हो उन लोगो के लिये अपनी बुद्धि के उपयोग से वीतराग भगवान के कथन की यथार्थता समझना कठिन नही है। फिर भी, यह मुख्यत तो श्रद्धा का विपय है । हम जीवन के छोटे बडे सभी कार्यों में अधिकाशत श्रद्धा पर चलते है। हमें अपने माता पिता के द्वारा उनके माता पिता या दादा दादी के विषय मे जो जानकारी मिलती है उस पर हम अविश्वास नही करते । उन बातो को हम श्रद्धापूर्वक सच मान लेते है । इस तरह श्रद्धा रखने से हम ठगे नही जाते । तो जिन सर्वज्ञ भगवतो ने अनेकान्तवाद जैसे अद्भुत तथा अप्रतिम तत्त्वज्ञान का वोध दिया है, और जिनके कहे हुए वहुत से वचनो को आधुनिक