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वैज्ञानिको ने प्रयोगशालाओ मे जाँच कर सिद्ध कर दिखाया है, उनके दर्शाये हुए आगमो (शास्त्रो)पर अश्रद्धा रखने का कोई उचित कारण हमारे पास नहीं है। __ चारो प्रमाणो के विषय मे साधारण जानकारी देने का कार्य पूर्ण करके आगे बढने से पहले इतना याद रखना जरूरी है कि इन चार में से प्रथम प्रमाण-प्रत्यक्ष प्रमाणहमे इन्द्रियो तथा मन के द्वारा बोध कराता है, जब कि बाकी तीन-दूसरा, तीसरा और चौथा-परोक्ष प्रमारण केवल मन तथा अन्य माध्यम के द्वारा ही हमे यथार्थ बोध देते है।
ऊपर तीन प्रकार के परोक्ष प्रमाण बताये गये है। इन तीन के बदले उसके पांच भेद भी किये जाते है । उन्हे स्मरण प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान, और आगम कहते है । यहाँ हम उनके विवरण मे नही उतरेगे, परन्तु जिन्हे इस विषय में दिलचस्पी हो उन्हे तज्ज्ञ (विशेषज्ञ) पुरुषो का सम्पर्क साधना चाहिए। ___-पुन नयविषयक विचारधारा पर आते समय अव हमे यह बात याद रहेगी कि नय ऊपर बताये गये प्रमाणो के विषय के अश को ग्रहण करते है। जैसा कि पहले निर्देश किया जा चुका है, नय व्याकरण के समान है। यदि सपूर्ण स्याद्वाद को कोई अनेकातवाद के व्याकरण की उपमा दे तो सात नय 'विभक्ति' की उपमा पा सकते है । हम नय को किसी भी नाम से पुकारे, यह बात अच्छी तरह समझ रखनी चाहिए कि 'नय' बडा महत्त्व का विषय है।
यहाँ पर 'नय' का जो थोडा सा विवेचन हुआ है, उसे देखकर शायद किसी के मन मे यह शका उत्पन्न हो कि प्रत्येक