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उपमान प्रमाण - साहश्य ज्ञान के द्वारा जो ज्ञान होता है उसे 'उपमान प्रमाण' कहते है । उदाहरणार्थ- हमारे यहाँ एक मेहमान आते है । वे हमारे आँगन मे एक गाय बधी हुई देखते है | गाय को देखकर वे सज्जन कहते है कि 'हमारे प्रदेश मे भी ठीक गाय जैसा ही एक जानवर होता है, जिसे नीलगाय ( रोझ) कहते है । इसके बाद कभी उक्त सज्जन के प्रदेश मे जाने का प्रसग श्राने पर हम वहाँ ऐसा एक प्राणी देखते है जो गाय नही परन्तु गाय का जैसा है । उक्त महाशय की कही हुई बात उस समय हमे याद आती है कि 'गाय के समान रोझ होता है' (गौरिव गवय ) । इस पर से हम निर्णय कर लेते है कि 'यह प्राणी रोझ (नील गाय ) है ।' यह उपमान प्रमारण का उदाहरण हुआ ।
आगम प्रमाण - प्राप्त ( श्रद्धा रखने योग्य श्रद्ध ेय तथा प्रामाणिक ) पुरुषो के वचन, कथन या लेखन से हमे जो बोध (ज्ञान) होता है वह श्रागम प्रमाण कहलाता है । सामान्यतः शब्दो के आधार पर जो ज्ञान होता है उसे श्रुत प्रमाण कहते हैं । श्रागम को श्रुत का एक अंग माना गया है ।
ग्रागम प्रमाण मे हमे श्रद्धा का उपयोग भी करना पडता है । शास्त्रो मे जो जो बाते दर्शायी गई है, उनको स्वीकार हम करते है, सो शास्त्रप्रमाण के द्वारा ही करते है । आगमो ( शास्त्रो) के विषय मे एक महत्त्व की बात यह है कि, प्रत्यक्ष तथा अनुमान आदि प्रमाणो के विरुद्ध उनमे कुछ नही होता, और उनमें लिखित वचन आत्मविकास