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अनुमान प्रमाण -लिंग से लिंगी का जो ज्ञान होता है, अर्थात् किसो एक वस्तु के द्वारा दूसरी वस्तु का जो ज्ञान होता है वह अनुमान प्रमाण है। उदाहरणार्थ-विशेप प्रकार की बास ग्राने पर हम जो निर्णय करते है कि कुछ जल रहा है वह 'अनुमान प्रमाण' है । यदि हमारी आँखो से दूर ग्रामपास मे कही कपडा जलता हो तो हमे विशेप प्रकार की वास
आती है, सबका ऐसा अनुभव है । इस वाम पर से 'कुछ जल रहा है' ऐसा निर्णय जो किया गया, उसमे 'अनुमान' काम कर रहा है । जब हमे अपने पडौस के घर मे से या दूर से धुआँ निकलता दिखाई देता है, तो उससे हम ऐसा निर्णय जो कर लेते है कि वहाँ आग होनी चाहिए, सो अनुमान प्रमाण के द्वारा ही होता है । दूर-दूर कही याग की लपटे देख कर हम समझ जाते है कि वहाँ आग लगी होगी। जब हम प्राग बुझाने वाले बम्बे को घटा वजाते वजाते तेजी से जाते हुए देखते है तब भी हम मान लेते हैं कि किसी स्थान पर प्राग लगी है। ' दूर से शहनाई या बैड की आवाज़ सुनकर भी हम सोचते है कि कोई उत्सव है । यह सव अनुमान प्रमाण माना जाता है। यह अनुमान प्रमाण दूर की किसी भी वस्तु या विपय के सवन्ध मे निर्णय करने मे हमारी सहायता करता है । 'दूर' के दो प्रकार है, एक 'काल की दृष्टि से दूर' अर्थात् भूतकाल या भविष्य काल से सम्बन्धित पीर दूसरा क्षेत्र की दृष्टि से दूर' अर्थात् हमारे स्थान से दूर ।।
इसी प्रकार मूक्ष्म वस्तु का ज्ञान भी अनुमान प्रमाण से हो सकता है।