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जो भिन्न भिन्न युक्तियाँ हैं, उनके विरोध में, तथा पचकारगवाद के पक्ष मे बहुत विस्तार से कहा या लिखा जा सकता है । परन्तु पाठको की विवेकबुद्धि तथा ग्रहरणशक्ति के प्रति पूर्णतया श्रादर एव विश्वास रखते हुए हमने यहाँ इतनी सक्षिप्त विवेचना ही की है।
अव हम 'मात नय, प्रमारण तथा निक्षेप के विषय मे विचार करने के लिये आगे बढ़ेगे ।