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नयविचार - प्रमाण और निक्षेप
नय के विषय मे विचार करने के पहले 'नय' शब्द का अर्थ हम अच्छी तरह समझ ले । यह जैन तत्त्वज्ञान का एक पारिभाषिक शब्द है । इसका सामान्य अर्थ 'ज्ञान' होता है । परन्तु यहाँ यह 'ज्ञान' अपने विशाल अर्थ में प्रयुक्त नही हुआ है, सीमित अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ।
किसी भी वस्तु को समझने के लिये किसी न किसी प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होती है । स्कूलो मे भिन्न भिन्न विषय पढाये जाते है, उनमे से प्रत्येक किसी एक ज्ञान का विषय होता है ।
जैन तत्त्ववेत्ताओ ने 'नय' शब्द की एक व्याख्या दी है । वे कहते है -
" जो किसी भी वस्तु का एक गुरण, धर्म या स्वरूप समभाता है वह 'नय' है । "
पहले हम देख चुके है कि वस्तु के अनेक गुणधर्म होते है । जैन शास्त्रकारो ने वस्तु के सब भिन्न भिन्न गुणो को अलग अलग रीति से समझने के लिए सात अलग २ 'नय' वताये है । इसलिये जब हम यहाँ नय की बात करते है तब 'सात नय' का उल्लेख करते है, ऐसा समझना चाहिए । इसका विशेष अर्थ यह हुआ कि एक ही वस्तु के सात भिन्न-भिन्न स्वरूपो