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१४६ ध्यान में रखनी चाहिए कि अवस्था या प्रसग के अनुसार किसी भी एक कारण को प्रधानता मिलती है। ___ दूध मे जामन डालने से दही बन गया, इसमे जामन डालने का उद्यम मुख्य कारण हुा । परन्तु अकेले उद्यममात्र से दूध का दही बन गया, ऐसा कोई नही मानता। यदि ऐसा ही होता तो दही कभी न विगडता । इसी तरह हर एक कार्य के विषय मे समझिये।
जैन तत्त्वज्ञानी अनेकातवाद की दृष्टि अपना कर कहते है कि, व्यवहारप्ट्या , जब जिस कारण को आगे करने से उद्यम को पोपण और चित्त को समाधान मिले, तब उस कारण को आगे करना—यह अनेकातवाद का यथार्थ उपयोग है । परन्तु किसी भी एक ही कारण को पकड कर बैठ जाना, दूसरे किमी भी कारण की उपयोगिता स्वीकार करने से इन्कार करना, अजान का सूचक है, मिथ्यात्व है, दुराग्रह है, राग द्वेप की वृत्ति को पोपनेवाला है और एकान्तवाद है । इसी तरह एकातवाद अज्ञान है, मिथ्यात्व है,दुराग्रह है और रागद्वेष की वृत्ति को पोपने वाला है। जिस कारण को आगे करने से आलस्य या चित्त के असमाधान का पोषण हो उस कारण को आगे करना भी मिथ्यात्व-एकान्तवाद है।
अनेकातवाद 'सम्यक्त्व' है, 'ज्ञान' है, वह निराग्रहिता, तथा समता को पुष्ट करता है। यही जीवन का एक सच्चा मार्ग है । यह बात अनुभवसिद्ध है । ऊपर बताये हुए पाँचो कारणो का यह 'पच कारणवाद' अनेकातवाद का ही एक प्रग है।
पाँच कारणो के विषय में अलग अलग कारणवादियो की