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जैसे भवितव्यता वादियो ने पक्षी का दृष्टान्त दिया है वैसे ही ये कर्म - कारणवादी भी दूसरा एक मनोरंजक दृष्टान्त देते है"एक स्थान पर अच्छी तरह बन्द किया हुग्रा एक टोकरा पड़ा था। इसमें खाने को कुछ वस्तु होगी, यह मानकर एक भूखे चूहे ने उस टोकरे में घुमने के लिये छेद करने का उद्यम प्रारंभ किया । स्वय उस टोकरे में प्रविष्ट हो सके, इम हेतु से उस नूहे ने टोकरे को कुतरना शुरू किया और कुतर कुतर कर उसमे एक छेद बना डाला ।
इस टोकरे मे किसी ने एक सांप बन्द कर रखा था । कई दिन का भूखा यह सांप, यह जानकर कि टोकरा कुतरा जा रहा है, अन्दर तन कर बैठ गया । ज्यो ही वह चूहा टोकरे में घुमा त्योही साँप के मुंह में जा गिरा। सांप को भोजन और मुक्ति दोनो एक साथ ही मिल गये । चूहे को खाकर, चूहे के द्वारा कुतर कुतर कर बनाये हुए छेद मे होकर वह साँप वाहर निकला और वन मे चला गया ।"
'यहाँ उद्यम तो चूहे ने किया । परन्तु उद्यम करने वाला मारा गया, और अन्दर बन्द किया हुआ साँप वहाँ से मुक्ति पाकर निकल गया । तब कहिये, इसमे कर्म ही बलवान है या और कुछ P" ऐसी बात कहकर इस दृष्टान्त के द्वारा कर्मकारणवादी कहते हैं, कि 'इस जगत में होते हुए सभी कार्यो का कारण केवल कर्म ही है ।'
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यहाँ 'कर्म' शब्द के अर्थ के विषय मे कुछ गडवडी न हो, इसलिए यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हम जो उद्यम, पुरुषार्थ या कार्य करते है उसके अर्थ मे 'कर्म' शब्द का यहाँ प्रयोग नही हुआ है । साधारणतया वर्तमान मे किये जाते हुए