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यह नसीव या प्रारब्ध तो चौथे कारण के अन्तर्गत ग्राजाता है, जिसे हमने 'कर्म' नाम दिया है ।
कर्म-कर्म को कारण मानने वाले कर्मवादियो के लिए दूसरा सरल, अर्थ स्पष्ट करने वाला शब्द प्रारब्धवादी है । सामान्य लोग साधारणत प्रारब्ध के लिये 'नसीब' या 'भाग्य' शब्द का प्रयोग करते है । 'जैसा जिसका नसीब' ये शब्द जव कहे जाते हैं तब उनका अर्थ 'पूर्व के कर्मों द्वारा बना हुया प्रारब्ध' होता है । इन एक ही वस्तु को सब कार्यो का कारण मानने वाले स्वयं को 'कर्मकारणवादी' कहते हैं । वे लोग काल, स्वभाव, तथा भवितव्यता को नही मानते । उनका कथन है कि
"जगत मे कर्म जो कुछ करता है वही होता है । कर्म से जीव कीडा, तिर्यच, मनुष्य या देव बनता है । कर्म से ही राम को वनवास भोगना पडा, कर्म से ही सीता को कलक लगने की तथा अग्नि परिक्षा देने की स्थिति मे पडना पडा । केवल कर्म रूप एक ही कारण के प्रताप से रामायण, महाभारत और पानीपत के युद्ध हुए, वर्तमान युग के दो विश्वयुद्ध, तथा हिटलर का पतन, रावण का नाग, कृष्ण का वध, ईसा को क्रॉस, और गाधीजी का विस्तोल की गोली से मरण आदि सब कर्म के ही कारण हुए । कर्म से ही राजा या रक बनते हैं, उद्यम करने वाला एक व्यक्ति भटकता है और कर्म के फल से दूसरा सोता सोता सभी फलो को प्राप्त करता है ।"
"कर्म से ऋषभदेव प्रभु को एक वर्ष तक अन्न नही मिला, और कर्म से हो महावीर प्रभु के कानो मे कीले ठोकी गई । कर्म से ही नेपोलियन शाहगाह बना तथा कर्म से ही वह कैद हो कर कारावास मे मरा ।"