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कजूस है।' ! " " कजस नही है ।'
ये इस प्रकार के चार कथन हुए । क्या हम चारो वाक्य एक साथ बोलेगे ? यो यदि देखा जाय तो चारो बाते सच्ची है। दूसरी तरह से ये चारो बाते गलत भी है। इनमे से किसी एक ही वाक्य को स्वतन्त्र रूप मे बोलेगे तो वह वात सच भी मानी जाएगी और झूठ भी ।
तब यदि इनमे से किसी भी एक वात को निश्चित तथा असदिग्ध ढग से व्यक्त करना हो तो हम क्या करेंगे ? यहा वही 'स्यात्' शब्द हमारी सहायता करेगा । 'कथचित् उदार है।' ऐसा जवाब हम दे देगे तो इससे 'ये महाशय कीर्ति प्राप्त कराने वाले क्षेत्र मे अवश्य उदार है' ऐसी एक निश्चित वात मुख्य रूप से व्यक्त करने के साथ साथ गौणरूप से दूसरी निश्चित वात भी समझा सकेगे कि 'अन्य क्षेत्रो मे ये महाशय उदार नही है।' ___स्यात्' शब्द की यह खूबी है । यह वात अत्यन्त शाति, लगन तथा बारीकी से समझ लेनी चाहिए । शायद कोई ऐसा भी कहे कि आपने अवतिकाप्रमाद की उदारता तथा कृपणता का समन्वय करके एक समाधानकारक मार्ग ढूंढ निकाला ।
नही, नहीं, ऐसा उलटा अर्थ न लगाइये ।
ऐसे बहुत से लोग, जिन्होने स्याद्वाद को भली भाति नही समझा है, इसे 'समन्वय' अथवा 'समाधानकारक मार्ग' (Combination or Compromising Formula) कहते है,
और मानते है । यह मान्यता गलत है । पहले तो यह ध्यान मे रखे कि समन्वय समान वस्तुओ का-गुणो का होता है,परस्पर