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सदेह या अनिश्चितता उपस्थित नही होने देगा | उसमे 'काला रग' यह तो एक निश्चित बात है ही । परन्तु उसके साथ ही 'स्यात्' शब्द क्षेत्र की अपेक्षा भी सूचित कर देता है, और यह निश्चित तौर पर वता देता है कि ग्रन्यत्र ग्रन्य क्षेत्रो मे काले रंग के सिवाय अन्य रंगो की चमडी वाले लोगो का अस्तित्व भी है । इस उदाहरण से विशेष स्पष्ट होगा कि शब्द के प्रयोग मे कोई 'सभावना' या ' सदिग्धता ' की बात नही, बल्कि निश्चियात्मकता है |
एक और उदाहरण ले । एक ही सज्जन के विषय मे बात करे ।
'श्री अवन्तिकाप्रसाद को कीर्ति का बडा भारी मोह है । ये महाशय कीर्ति प्राप्त करने के लिए उदारतापूर्वक धन का व्यय करते है | परन्तु जहाँ कीर्ति न मिलती हो वहाँ -- जैसे कि किसी भिक्षुक को - वे एक फूटी कौडी भी नही देते, इतना
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ही नही, ऊपर से उसे धमकाते है । अपनी व्यक्तिगत ग्रावश्यकताओ के क्षेत्र मे भी ये महाशय बहुत ही कजूस है । घर मे दियासलाई की तूलियो का भी हिसाव रखते है ।
श्री अवन्तिकाप्रसाद के उपर्युक्त शब्द चित्र से फलित होता है कि उनमे उदारता एव कृपरणता दोनो परस्पर विरोधी गुण विद्यमान है । दोनो एक साथ उनमे रहते है । यदि उनके स्वभाव का वर्णन करने का प्रसंग हमारे सामने उपस्थित हो तो किस प्रकार कहेंगे ?
'श्री श्रवन्तिकाप्रसाद उदार हैं ।'
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उदार नही है ।'