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हमारी विचारधारा एक ही अन्त तक या वस्तु को एक ही अवस्था तक सीमित हो जाएगी। अनेकात-वाद को स्याद्वाद भो कहने का यह एक खास कारण है । यदि हम इस शब्द को छोड कर चले, तो हमारी स्थिति घोर अरण्य मे भटकने वाले अधे प्रवासी के समान हो जाएगी। फिर हमें उसमे से बाहर निकलने का रास्ता कभी नहीं मिल सकता ।
अब तो 'स्यात्' शब्द के प्रयोग की सपूर्ण उपयोगिता ध्यान मे आ गई न ? - इस विषय को कुछ विस्तार से समझने का प्रयत्न करे । - ससार के भिन्न भिन्न महाद्वीपो तया देशो मे रहने वाले मनुष्यो की चमडी के रग का विचार करे । इस विश्व मे मुख्यतया पाच रगो की चमडी वाले मनुष्य बसते है जो निम्नानुसार है-भारत मे गेहुँआ रग, चीन मे पोला, अफ्रीका मे काला, यूरोप-अमरीका मे गौर वर्ण, और अमरीका के
आदिम निवासियो की चमडी का लाल रग । ___ यदि कोई पूछे कि 'मनुष्य की चमडी का रग कैसा है ?" तो हम क्या जवाव देगे ? उपरोक्त पाचो रग मनुष्य के है, फिर भी क्षेत्र-भेद से पाच रग अलग अलग है। जब हम 'गेल्या रग' कहेगे तब भारतवासियो के सम्बन्ध में यह कथन सही एव निश्चित है, परन्तु अफ्रीका के निवासियो के सम्बन्ध मे गलत भी है । ___ अफ्रीका के मूल निवासियो की चमडी का रंग काला है," इस कथन मे कोई भ्रान्ति या सन्देह नहीं है। जब हम वहाँ के निवासी के विषय मे स्यात्+श्याम'यो दो शब्द मिलाकर उत्तर देगे तो उक्त 'स्यात्' शब्द श्याम रग के विषय में कोई