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विरोधी वातो का समन्वय नही होता । फिर इसमें कुछ समाधान भी नही है । यह किसी प्रकार तोड-जोड करके, इधर उधर से कुछ छूट रखकर तैयार किया हुआ समाधानमार्ग नही है । यह तो एक स्पष्ट, किसी भी प्रकार की उलझन से रहित बात है इससे बढकर यह सभी उलझनो को दूर करने की रीति है ।
यह एक शुद्ध सत्य का मार्ग है । इसमे प्रयुक्त या श्रमत्य के साथ समाधान या ममूहीकरण नही किया गया है । समाधान में तो कुछ तोड-जोड करनी पडती है, कुछ छोड देना होता है | समाधान कभी पूर्ण न्याययुक्त, विल्कुल उचित या तर्कबद्ध हो, यह सभव नही है । यदि ऐसा होता तो, उसके लिए 'समाधान' शब्द के स्थान पर 'अदल इन्साफ' शब्द का प्रयोग किया जाता ।
यह भलीभांति समझ लीजिए कि 'स्यादवाद' एक 'नटस्थतावाद का अथवा निष्पक्षतावाद का सिद्धान्त है ।' यह सत्य और सत्य को समान दृष्टि से नही देखता । यह किसी एक पर प्रीति और दूसरे पर द्वेष भी नही रखता । इमका पक्षपात केवल शुद्ध न्याय की ओर होता है । ग्रसत्य और अन्याय का यह प्रखर विरोधी है ।
सत्य स्यादवाद की दृष्टि से एकात है, सत्य को वह कात मानता है ।
समन्वय या समाधान में न्याययुक्त या युक्तियुक्त (Logical) तत्त्व का अभाव होता है, जब कि स्याद्वाद तो सुतर्क(Substancial logic ) से श्रोतप्रोत है । किसी एक की हानि से दूसरे के लाभ की बात यहाँ नहीं है, दूसरे के लिये