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निधन हैं। द्रव्य द्र धातु से बना हुआ शब्द है यानि द्रव्य हमेशा अपने मूल गुणो से ध्रुव रहता हुआ अनन्त पर्यायों में अवस्यान्तर पाता ही रहता है और उसी कारणवशात् संसार में संयोग वियोग, उत्यान पतन, जन्म मरण, हर्प शोक और हानि लाभ सारी घटनायें बनती रहती हैं । आगम ग्रन्यों में जव २ पदार्थदर्शन एवं वस्तुस्वभाव के ऊपर प्रश्नोत्तर का प्रकरण चलता है तो यही समाधान दिया है कि सारी वस्तु नित्यानित्य सभाव वाली है अर्थात् द्रव्यार्थिक नय (Absolute point of view) से सब ही नित्य है और पर्यायार्थिक नय एवं व्यवहार नय (Relative point of view) से अनित्य है, चाहे चेतन तत्व रुप मानव दानव या पशु पखी हो, चाहे अचेतन (जड़) तत्त्व रूप घट पटादि पदार्थ हो । उदाहरणार्थ जैसे सुवर्ण की मुद्रिका मे से कान के कुण्डल बन गये तो सुवर्ण अपने पीला भारी और कोमल स्वभाव मे वैसा का वैसा है मात्र आकृति (पर्याय) में परिवर्तन होता है । वही हालत भिन्न २ प्राणियों के जन्म मरणादि की है। इसलिये जो उपरोक्त दोनों दृष्टियों का विकास नही साधते है उनके लिये सारे हर्प शोक एवं सुख दुख का झगडा अनिवार्य है और मारे दर्शनों का साध्यविन्दु प्राणियों को इस विडम्बना एव झगड़े में से मुक्त करने का है इसलिये स्थितप्रन, समभावी या समत्वदर्शी बनना ही अगर सारे शास्त्रों का साराश हो तो स्यावाद संशयवाद नहीं परन्तु सत्यवाद एवं सम्यगवाद है। संसार के समस्त पदार्थविनान का स्वभाव ही स्यावाटमय है अर्थान् सृष्टि का संचालन स्याद्वादमय हो रहा है इसलिये स्याद्वाद के अध्ययन, मनन और मूक्ष्म परिशीलन के विना मानव का महोदय पद को प्राप्त होना दुष्कर एव असम्भव है। यह मसार की समस्त समस्याओ के शान्ति समाधान ( For the solution of all the burning problems ) के अपूर्व ज्ञान का खजाना है इसलिये स्यावाद का