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________________ खण्डन करना सूर्य के सामने धूल उड़ाने जैसा विपय है । स्यादबाद यह नही कहता है कि चाँदी की भ्रान्ति अथवा रज्जू में सांप की भ्रान्ति से भ्रमित हो जाओ । स्याद्वाद तो यह कहता है - वस्तु विज्ञान का (१) स्याद् अस्ति, (२) स्याद् नास्ति, (३) स्याद अस्ति नास्ति ( ४ ) स्याद् अवक्तव्य (५) स्याद् अस्ति अवक्तव्य (६) स्याद् नास्ति अवक्तव्य (७) स्याद् अस्ति नास्ति अवक्तव्य, इस प्रकार से सप्त भंगी द्वारा सूक्ष्मावलोकन करके विकास साधो तब ही सत्य का साक्षात्कार हो सकता है । स्याद् शब्द यही संकेत करता है कि तुम्हारे कथन में कुछ है परन्तु सब कुछ नहीं । अरव सागर (Arabian sea ) में हिन्द महासागर, ( Indian ocean ) का ही पानी है परन्तु हिन्द महासागर नही । इसलिये सव ही पदार्थ का सापेक्ष प्रतिपादन है अर्थात् एकान्त नहीं परन्तु अनेकान्त है । इसी अनेकान्तवाद या सापेक्षवाद (एक पर्यायवाचक शब्द है) और आधुनिक विज्ञान का सम्राट् डा० आइन्स्टन (Einsten ) की (Theory of relativity) सापेक्षवाद की मान्यता भी कितनेक अश में अनेकान्तवाद से अनुसरती है। इससे सिद्ध होता है स्यादवाद विज्ञान का भी महाविज्ञान है, क्योकि स्याद्वादमय स्वभाव से पदार्थ विज्ञान विश्व का सूक्ष्मगणितमय Higher mathematical piocess स्वय सचालन कर रहा है । आधुनिक विज्ञानवेत्ता (Scientists) एक आवाज से स्वीकार करते है कि Universe is self created, self-1uled and self-systematised by its unchangable and potential Laws विश्व अपना सर्जन सचालन और शासन स्वय ही अपने अटल नियमों के अनुसार कर रहा है। सृष्टि का सर्जनहार, संरक्षक और सहारक मात्र मानव कल्पनायें ( Imaginary conceptions) है | स्याद्वाद भी विज्ञान की तरह ऐसी कल्पित मान्यताओ को कभी स्थान नही देता है इसलिये स्यादवाद ही सत्यवाद है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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