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________________ 91 विदेशों में जैन धर्म तीर्थकर अनन्तनाथ का लांछन (चिन्ह) था, इससे मार्शल के अनुसार प्रमाणित होता है कि ये मन्दिर जैन मन्दिर थे। सिन्धु सौवीर जनपदों में जैन धर्म सम्राट् सम्प्रति मौर्य के समय में भारत में पच्चीस से अधिक जनपद विद्यमान थे जहां निरन्तर जैन साधु-साध्वियों का विहार होता रहता था। सिन्धु-सौवीर की राजधानी वीतभयपत्तन थी जो सिन्धु नदी के तट पर स्थित महानगर थी। गांधार की राजधानी तक्षशिला (पेशावर) थी। कश्मीर उस समय गांधार का ही एक भाग था जो सब तत्कालीन सिन्धु देश में ही समाहित थे। इन सब क्षेत्रों में जैन धर्मी जनता विद्यमान थी। केकय जनपद, जेहलम, शाहपुर और गुजरात (पंजाब का एक जिला). पांचाल, श्वेतंबिका, सावत्थी (स्यालकोट), कांपिल्य आदि में जैन धर्म का व्यापक प्रसार था। यहा का राजा उदायण था और रानी प्रभावती थी, जो भगवान महावीर में मामा गणतन्त्र नायक महाराजा चेटक की सबसे बड़ी पुत्री थी। वीतमयपत्तन व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था। भगवान महावीर 17वां चौमासा राजगृही में करके चम्पापुरी आये और यहां से विहार करते हुए इन्द्रभूति गौतम आदि साधु-समुदाय के साथ विक्रमपूर्व 496-95 में 47 वर्ष की आयु में सिन्धु-सौवीर की राजधानी वीतमयपत्तन में पंधारे (बृहत्कल्पसूत्र, विभाग 2, गाथा 997-999) और राजा उदायन को दीक्षा दी।1००. भूखनन से अनेक स्थानों से तीर्थंकर प्रतिमायें समय-समय पर प्राप्त होती हैं। ऐसी एक धातु की खड्मासन प्रतिमा अकोटा से प्राप्त हुई थी जो बडौदा म्यूजियम में सुरक्षित है।
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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