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निश्चय है। सूत्र में दोपदई सम्पदविज्ञानवारिवामिजोरमोसनानः दोनों ही सामासिकपडा सम्पमानिशानवारित्राशि में वन्द्व समास है। समासघटक प्रत्येक पद प्रधान है। फलत: सम्यक् पद का सभी से स्वतन्त्र सम्बन्ध है। इस प्रकार सूत्र के एक अंश का अर्थ है -सम्बग्दर्शन, सम्बवान तथा सम्बवारिव मोक्षमार्ग का अर्थ स्पष्ट है। तीनों की पूर्णता युगपद् भी हो सकती है और नहीं भी। अर्थात् जिसे सम्यक्पारित होगा उसे नियम से सम्यग्दर्शन और साम्यवान होगे ही, परन्तु जिसे सम्यग्दर्शत होगा उसे, सम्याचारित्र हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता
अभिप्राय यह है कि तीनों सम्मिलित रूप में मोक्षमार्ग है। इस अपेक्षा तीनों एक है। सूत्र में विशेषण का बहुवचनान्त होना और विशेषष का एकवचनान्त होना 'वेदाः प्रमाणम्' की तरह सोद्देश्य और सार्थक है।
कतिपय दार्शनिकों का अभिमत है कि बन्ध का कारण अज्ञान है और अज्ञाननिवृत्ति से मोक्ष साध्य है, परन्तु जैन परम्परा इससे सहमत नहीं। यद्यपि अज्ञाननिवृत्ति भी एक महत्त्वपूर्ण घटक है और अज्ञाननाश से बन्ध दर होता है। साख्यदर्शन प्रकृति और पुरुष विषयक विपर्यय ज्ञान से बन्ध तथा अन्यथा ख्याति से मोक्ष मानता है। न्यायदर्शन तत्त्वज्ञान से मिथ्याज्ञाननिवृत्ति पर मोक्ष स्वीकार करता है। मिथ्याज्ञान से दोष, दोष से प्रवृत्ति, प्रवृत्ति से जन्म और जन्म से युःख की सतति प्रवहमान होती है। इसी सर्वमूल मिथ्याज्ञान की निवृत्ति ज्ञान से होती है । वैशेषिक की भी यह मान्यता है कि इच्छा और द्वेष से धर्माधर्म और उससे सुख-दुःखात्मक ससार की स्थिति है। यहाँ छः पदार्थों का तत्त्वज्ञान होते ही मिथ्याज्ञान निवृत्त होता है। बौद्ध भी अविद्या के नष्ट होने पर समस्त दुःखचक्र की समाप्ति स्वीकार करते हैं। जैनदर्शन के अनुसार मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग को बन्ध का कारण निरूपित किया है। कैवल्यप्राप्ति को मोक्ष का कारण माना गया है। इस प्रकार जब सर्वत्र ज्ञान को दुःखनिवृत्ति का व्यञ्जक स्वीकार किया गया है तब कैवल्य को ही मोक्ष हेतु मानना सुघटित होता है। ज्ञान के साथ दर्शन और चारित्र की क्या आवश्यकता ? समकालोत्पादक दर्शन, ज्ञान, चारित्र भिन्न नहीं है यह समाधान पर्याप्त नहीं क्योंकि समकालोत्पादकता तो दो सोंगों में भी है, क्या इसलिए वे एक हो जायेंगे? तात्पर्य यह कि दर्शन, ज्ञान, चारित्र तीन हैं, एक नहीं । अत: केवलज्ञान मात्र को मोक्ष का हेतु मानने में कोई आपत्ति नहीं । वेदान्त भी कहता है 'ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः।
___ आचार्य उमास्वामी के उपर्युक्त सूत्र की टीका करते हुए आचार्य पूज्यपाद ने कहा है - मार्ग: एकवचनान्त है अत: सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों मिलकर ही मोक्ष का साक्षात् मार्ग है। राजवार्तिककार श्रीमद् भट्टाकलकदेव ने समाधान करते हुए कहा है कि यद्यपि ज्ञान से निवृत्ति होती है, परन्तु जिस प्रकार रसायन का श्रद्धापूर्वक ज्ञानकर उपयोग या सेवन किए जाने पर आरोग्य फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार श्रद्धा और ज्ञानपूर्वक आचरण से ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है जिस प्रकार अज्ञानपूर्वक क्रिया निरर्थक है, उसी प्रकार क्रियाहीन ज्ञान निरर्थक है और उसके लिए दोनों ही निरर्थक हैं, जिसमें निष्ठा और श्रद्धा नहीं है। इस प्रकार श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र - इन तीनों की ही अभीष्ट फल प्रदान करने में सम्मिलित कारणता सिद्ध होती है। १.राजबार्तिक 1/1- एषां पूर्वस्य लाभे भजनीवमुत्तरम् । उत्तरलाभे तु नियतः पूर्वलाभः। २. राजवार्तिक।/1/45/14/1.... यतो मोषमार्गवियतकल्पना ज्यासीति ... ३. मिथ्यावर्शनाविरसिंप्रमादकवाययोना चन्चहतवः तत्वार्थसूत्र./. ४. ससिद्धि- सम्बन्धी सम्बणान सम्बक्यारिखमेतत् त्रितयं मोबास्य साक्षान्मार्यो वितण्यः ।
महापुराण -24/120-122त्यायबीपिका , !, ५. राजवार्तिक- अती रसायनज्ञानबहानक्रियासेक्नोपेत्तस्य तत्कतेनाभिसम्बन्ध इति नि:प्रतिवन्टमेतत् समान मोलमार्गशामादेव
मोक्षणामिसम्बन्धो, वनचारित्राभावात् ।।/1/9/14/1