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तस्वार्थतन-निकष 1 272 12. जिनालय प्रथम सल में छठवी वेदी का निर्माण । 6 मई 81 को इस वेदी की प्रतिष्ठा होकर भगवान् चन्द्रप्रभु की
प्रतिमा विराजमान हुई। 13. वर्ष 84 में जैन सामूहिक विवाह सम्मेलन योजना का शुभारम्भ प्रथम आयोजन 13-16 अप्रैल 84। यह आयोजन
निरन्तर 10 वर्षों तक सफलता पूर्वक आयोजित हुआ। 14. वर्ष 85 में सरस्वती भवन के सामने दो मंजिली भवन का निर्माण हुआ। 15. वर्ष 89 में पूज्य आर्यिका गुरुमति माता जी (ससंघ) की ग्रीष्मकालीन वाचना हुई। साथ में आर्यिका दृढमती जी,
मृदुमति जी, तपोमति जी, सत्यमति जी, गुणमति जी, जिनमति जी, निर्णयमति जी, उज्ज्वलमति जी, पावनमति
जी एवं क्षु. निर्माणमति जी थी। 16. वर्ष 1990 में श्री पं. जगन्मोहनलाल जी शास्त्री साधुवाद समारोह का आयोजन हुआ। इसमें देश के शीर्षस्थ लगभग
100 विद्वानों की उपस्थिति में विद्वत्परिषद का सम्मेलन सम्पन्न हुआ। त्रिदिवसीय कार्यक्रम मे साह अशोककुमार जी, माणिकचन्द चंवरे आदि पधारे थे।
आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह का भी आयोजन इसी वर्ष हुआ। 17. वर्ष 1991 में परम पूज्य मुनिराज श्री 108 क्षमासागर जी महाराज (ससघ) का चातुर्मास हुआ । साथ मे मुनि श्री
समतासागर जी, मुनि श्री प्रमाणसागर जी व 3 अन्य पिच्छीधारी ऐलक-क्षुल्लक थे। 18. वर्ष 1993 में पूज्या आर्यिका श्री 105 प्रशान्तमति माता जी का ससघ चातुर्मास सम्पन्न हुआ। सघ में आर्यिका
अनन्तमति जी, निर्मलमति जी, विमलमति जी, शुक्लमति जी, विनम्रमति जी, अतुलमति, विनतमति जी, अनुगममति जी, संवेगमति जी एवं निर्वेगमति जी थीं। आपके सानिध्य मे इन्द्रध्वज मण्डल विधान का आयोजन
भी हुआ। 19. वर्ष 1994 में परम पूज्य आचार्य विरागसागर जी महाराज की ससघ उपस्थिति मे शीतकालीन वाचना 8-1-94 से
5-2-94 तक सम्यग्ज्ञान शिक्षण शिविर के साथ सम्पन्न हुई। 20. वर्ष 1998 में 6-11 फरवरी तक पचकल्याणक प्रतिष्ठा परमपूज्य मुनि समतासागर, मुनि प्रमाणसागर व क्षु.
निश्चयसागर जी के सान्निध्य में सम्पन्न हुई। इसमे भगवान कुन्थुनाथ व भगवान् अरनाथ के जिनबिम्बो की प्रतिष्ठा की गई। दयोदय पशु सेवा केन्द्र का शुभारम्भ 22-3-1998 में हुआ।
परम पूज्य आचार्य श्री 108 आर्यनन्दि जी महाराज का द्वितीय चातुर्मास हुआ। 22. वर्ष 2000 में भगवान श्री शान्तिनाथ के शिखर पर सुवर्णमण्डित कलश तथा ध्वज स्थापना दिनाँक 4-2-2000 को
श्री 105 आर्यिका पूर्णमति माता जी का ससंघ चातुर्मास सम्पन्न हुआ । संघस्थ आर्यिकायें थीं - शुभमति जी, साधुमति जी, आलोकमति जी, विशदमति जी, विपुलमति जी, मधुरमति जी, एकत्वमति जी (समाधिस्थ), कैवल्यमति जी, सतर्कमति जी एवं श्वेतमति जी।