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________________ : 261 / संस्थान-निकव सभा के प्रारम्भ में कु· रूपाली जैन सागर के भजनों की संगीतमय प्रस्तुति एवं चिन्मय विद्यालय के नन्हेंनन्हें बालक-बालिकाओं द्वारा वेदमन्त्रों व गीता के श्लोकों का सस्वर वाचन बड़ा ही सम्मोहक था। इस सभा में विशिष्ट मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित माननीय कलेक्टर श्री उमाकान्त उमराव एवं पुलिस अधीक्षक श्री आर. के. गुप्ता सादी वेशभूषा में सामान्य श्रोताओं के बीच में बैठकर मुनि श्री के प्रवचन का रसपान करते रहे। बाद में जब लोगों को उनकी उपस्थिति का भान हुआ तो मंच पर बुलाकर उन्हें सम्मानित किया गया। आमन्त्रित अतिथि के रूप बीना से पं. प्राचार्य निहालचन्द जैन एवं सतना के पं. रघुनाथ त्रिपाठी एवं डॉ. एस. के. माहेश्वरी भी मंचासीन रहे। महावीर मण्डप श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम के पाँचवें व अन्तिम दिवस 'धर्मसम्मेलन' का आयोजन था, जिसमें पूज्य मुनि श्री के अलावा हरे माधव सम्प्रदाय के सतगुरु श्री ईश्वरशाह और सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुये हरिद्वार से पधारे स्वामी अखिलेश्वरानन्दगिरि थे । सिखधर्म के प्रतिनिधि के रूप में डॉ० जसविंदरसिंह जी ब्यावर से पधारे थे। स्वामी श्री अखिलेश्वरानन्दगिरि जी ने मुनि श्री प्रमाणसागर जी को केन्द्रबिन्दु बनाकर साम्प्रदायिक सौहार्द्र का और संतों की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता पर बल दिया। मुनि श्री प्रमाणसागर जी ने भगवान महावीर के अनेकान्त को फूलों का गुलदस्ता कहकर अपने अमृतमयी प्रवचन में वर्तमान के अनेक सन्दर्भों को लिया - गौमाता की सेवा और व्यसन मुक्ति के साथ दीपावली पर आतिशबाजी न करने की मार्मिक अपील की। इस सभा का शुभारम्भ श्रीमती सरला चौधरी के द्वारा संगीतमय गुरुवन्दना एवं समापन गुरु आरती से हुआ। सम्पूर्ण पंच दिवसीय आयोजन में सभा समाप्ति पर प्रसाद वितरण निरंकारी मण्डल सतना, अखिल भारतवर्षीय सर्व ब्राह्मण समाज, सतना, पंजाबी नवयुवक मण्डल, नानक दरबार एवं श्वेताम्बर जैन संघ ट्रस्ट आदि सतना के विभिन्न धार्मिक समुदायों व संस्थाओं द्वारा किया गया। धर्मसभा के संयोजक श्री लखनलाल केशरवानी एवं इसके सहसंयोजक श्री सिंई जयकुमार जैन ने अपने सक्रिय उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुये सम्पूर्ण समारोह में चार चाँद लगा दिये। इस प्रकार इस सम्पूर्ण आयोजन ने धर्म सहिष्णुता, मानवीय संवेदना, अहिंसा की प्राण प्रतिष्ठा और पारस्परिक प्रेम - वात्सल्य तथा उदारता की जो अद्वितीय मिशाल दी वह कई वर्षों तक सतना के प्रबुद्ध मानस हृदयों में अंकित रहेगी। पं. निहालचन्द जैन, बीना
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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