________________
तस्वार्थसून-निकष 1238
भगवान् शान्तिमाय की इस प्रतिमा पर सुधार कार्य (घिसाई) हुई। लगभग दो वर्ष तक प्रतिमा जी अप्रतिष्ठित रही। इसका प्रतिकूल प्रभाव भी समाज पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा । अत: प्रतिमा जी को पुन: संस्कारित कर उनके लिये प्राचीनकला से मिलती जुलती वेदी का निर्माण कराया गया। महिला वर्ग के सहयोग से कुन्थुनाथ एवं अरनाथ जी की देशी लाल पाषाण की प्रतिमाएँ मॅगवाकर दोनों पार्श्व में स्थापित की गई, जिनके कारण शान्तिनाथ जी की प्राचीनता संरक्षित हुई । इनकी प्रतिष्ठा हेतु फरवरी 1998 में पंचकल्याणक एवं गजरथ समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन परम पूज्य आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य परम पूज्य मुनिराज श्री समतासागर जी, श्री प्रमाणसागर जी एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी के पावन सान्निध्य में संपन्न हआ। वर्तमान में इस वेदिका का क्रम पॉचवां है। मन्दिर का पश्चिमी प्रवेश द्वार बहुत सुन्दर एवं मजबूत था । द्वार के दोनों ओर नौबतखाने बहुत सुन्दर बने हुये थे । इन पर बहुत खूबसरत टाइल्स के सुन्दर रंगों में सजीव से दो मोर बने हये थे। इन नौबतखानों से विशिष्ट अवसर पर शहनाई या अन्य वाद्य यन्त्र बजाये जाते थे।
कालक्रम चलता रहा और सतना में सीमेंट फैक्ट्री तथा अन्य उद्योगों की स्थापना के साथ जनसख्या तेजी से बढ़ी । व्यापार या नौकरी के लिये अनेक जैन परिवार सतना आते गये । मन्दिर जी का प्रांगण छोटा पडने लगा, अत: विस्तार का कार्य प्रारम्भ हुआ । आगन, बरामदे एवं छोटे कमरे सबको मिलाकर नीचे का बड़ा हॉल निर्मित किया गया । तीसरी वेदी को भी स्थानान्तरित करने की योजना थी, पर विरोध के कारण क्रियान्वित न हो सकी। सन् 1973 में भगवान् बाहुबली की प्रतिमा मँगवाई गई थी जो हल्की -सी खामी होने के कारण दो वर्ष तक अप्रतिष्ठित खडी रही । कालान्तर में बाहुबली जी की दूसरी प्रतिमा 1975 में आई। इसी समय मुन्नीलाल हुकुमचन्द जी (पीपल वाला) ने पश्चिमी द्वार के सामने मानस्तम्भ का निर्माण कराया। दिसम्बर 1975 में सतना जैन समाज द्वारा पचकल्याणक प्रतिष्ठा एव गजरथ महोत्सव का आयोजन किया गया । इस वर्ष परम पूज्य मुनिराज श्री 108 आर्यनन्दि जी महाराज का सतना में चातुर्माम हुआ था। उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन में यह आयोजन बहुत प्रभावनापूर्ण ढंग से सम्पन्न हुआ। बाहुबली जी सहित मानस्तम्भ में विराजमान भगवान् आदिनाथ, भगवान् चन्द्रप्रभु, भगवान् शान्तिनाथ तथा भगवान महावीर के जिनबिम्बों की भी प्रतिष्ठाएँ हुई। बाहुबली जी की प्रतिमा हॉल में दक्षिणी द्वार के समीप वेदिका बनाकर (वेदिका क्रमांक 4 में) स्थापित की गई है। वर्तमान में प्राय: सभी बड़े कार्यक्रम तथा सामूहिक पूजन-विधान इसी वेदिका के सम्मुख सम्पन्न होते हैं।
सेठ नत्थूलाल जी की धर्मपत्नी श्रीमती गेंदाबाई (रावरानी फुआ) के विशेष आग्रह एव दान से हॉल के ऊपर छठवीं वेदी का निर्माण हुआ, जिसमें वेदीनायक के रूप में श्री चन्द्रप्रभु भगवान् विराजमान हैं। 6 मई 81 को इस वेदी की प्रतिष्ठा हुई।
___ मन्दिर जी के पश्चिमी द्वार से बाहर मैदान में अशोक का घना पेड़ चारों ओर चबूतरे सहित था। उत्तरदिशा में सेठ दिगनलाल जी की दो मंजिली धर्मशाला थी। बाहर मैदान की रूपरेखा बदली। मानस्तम्भ को घेरकर बाउंड्री एवं दरवाजे बनाये गये। सेठ दिगनलाल जी वाली पुरानी धर्मशाला तोड़कर मैदान में एक विशाल सभागार का निर्माण हुआ। नाम रखा गया 'श्री दयाचन्द्र सरस्वती भवन' । सन् 1980 में निर्मित इस सभाकक्ष में लगभग एक हजार श्रोताओं के बैठने की व्यवस्था है। हॉल ऐसा बना है कि आवाज गूंजती नहीं। पृथ्वीतल पर होने के कारण और बाहिरी मैदान से इसका फर्श मात्र 7 इंच ऊँचा होने के कारण श्रोताओं की संख्या अधिक होने पर बाहर मैदान में बैठे श्रोता भी अपने आपको सभाभवन