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तत्त्वार्थ सूत्र के आधार पर पुण्य पाप की मीमांसा
* पं. शिवचरनलाल जैन
जयत्यशेपतत्त्वार्थ प्रकाशित चितत्रियः 1
मोहध्वान्ती पनि दिज्ञानज्योतिजिनेशिनः ॥ - तत्त्वार्थसार
"श्री जिनेन्द्र भगवान की प्रसिद्ध वैभवयुक्त सपूर्ण पदार्थों को प्रकाशित एवं मोहान्धकार के समूह को नष्ट करनेवाली ज्ञानरूपी ज्योति विजयी हो।"
तत्त्वार्थ सूत्र अपरनाम मोक्षशास्त्र जैन धर्म की सभी सप्रदाय मान्य सर्वोत्कृष्ट कृति है । संस्कृत भाषा एवं अत्यंत सारगर्भित सूत्र शैली का यह वर्तमान में उपलब्ध सर्वप्रथम ग्रंथ है। इसमें जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वो का निरूपण किया गया है, अतः इसका तत्त्वार्थ सूत्र नाम सार्थक है। इसमें संसारी दुःख - संतप्त प्राणी के दु:खनिवृत्ति तथा वास्तविक अनाकुलतारूप सुख प्राप्ति अर्थात् मोक्ष एवं मोक्षोपाय की ही चर्चा है, अत: इसकी द्वितीय 'मोक्षशास्त्र' अन्वर्थ सज्ञा है। इसके रचियता श्री उमास्वामी (गृद्धपिच्छ) आचार्य ने, जो आचार्य कुंदकुंद के पट्टशिष्य थे, अब से लगभग 2000 वर्ष पूर्व इस भारत भूमि को सुशोभित किया था। उन्होने इस 'गागर में सागर' के समान ग्रंथ में सर्वार्थसिद्धि - मार्ग, मोक्षोपाय रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र) को मात्र 357 सूत्रों में गुम्फित कर लोकहित सपादन किया था । यह तत्त्वार्थ सूत्र रूप महाप्रकाश अद्यावधि भव्यजीवों का कण्ठहार बना हुआ है।
आ. कुंदकुंद ने समयसार में सात तत्त्वों में पुण्य-पाप को सम्मिलित कर नव तत्त्व या नव पदार्थ प्ररूपित किये हैं। अभेदविवक्षा से पुण्य पाप को आम्रव तत्त्व मे गर्भित कर प्राय: मनीषीजनों ने सात तत्त्वों का प्रतिपादन किया है। मैं इसके साथ ही विशेष रूप से अध्येताओं का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा कि मोक्ष से अतिरिक्त पुण्य-पाप का समावेश तो छहों तत्त्वों में ही है। छहों दो-दो प्रकार के हैं। छहो तत्त्वों में पुण्य-पाप मीमांसा निम्न रूप में दृष्टव्य है
1. जीव : पुण्य जीव - रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग में अवस्थित जीव या रत्नत्रय के सम्मुख जीव । पुण्य प्रकृतियों से प्रभावित तथा पाप प्रकृतियों पर विजय प्राप्ति में सलग्न जीव ।
पाप जीव - मिथ्यादर्शन - ज्ञान चारित्र मं प्रवृत्त, विषय- कषाय में रत पापमग्र जीव । पापप्रकृतियों से विशेष प्रभावित जीव । (त.सू. /6/7, अधिकरणं जीवाजीवाः)
जिनेन्द्र
2. मीन : पुण्य अजीव -नो आगम द्रव्य रूप, रत्नत्रय से पावन ज्ञायक शरीर, पूजादि के मंगल द्रव्य,
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