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11134/सस्वार्थस्सा-निमय
5, पुरुषवेद
कामुकता कामवृत्ति, कामुकता 6. नपुंसकवेद 1.मान
उत्कर्षभावना स्वाग्रहवृत्ति उत्कर्षभावना है. लोभ
अधिकारभावना उपार्जनवृत्ति स्वमित्वभावना 9. रति
उल्लसितभाव हास्यवृत्ति उल्लसितभाव 10.अरति
दुःखभाव याचनावृत्ति दुःखभाव आहारअन्वेषणवृत्ति भूख पित्रीयवृत्ति वात्सल्य यूथवृत्ति सामूहिकता आत्महीनता वृत्ति हीनताभाव
रचनावृत्ति (लोभ) सृजनभावना
धवला मे आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार मज्ञाओ का उल्लेख मिलता है। स्थानाग मे इनकी सख्या दस हो गई है - आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, ओघ (सामुदायिकता) और लोक (वैयक्तिक)। आचारोगनियुक्ति में सुख-दुःख, मोह, विचिकित्सा और शोक सज्ञाये और जड़ गई। आहार, भय, मैथन और परिग्रह के कारण क्रोध, मान, माया, लोभ पैदा होते हैं। ओघ और लोक सामदायिकता पर आधारित है। प्रथम चार मल सज्ञाओ की उत्पत्ति में निम्न कारणों का उल्लेख मिलता है (स्थानांग, 4:579-82) -
कारणता 1. आहार भूख, आहारदर्शन, आहारचिन्तन
तिर्यञ्च 2. भय हीनता, भयानकदृश्य, भयचिन्तन
नरक 3. मैथुन मांस-रक्त का उपचय, मैथुनचर्चा, मैथुनचिन्तन
मनुष्य 4. परिग्रह आसक्ति, परिग्रहचर्चा, परिग्रह चिन्तन
यहाँ 'मैथुन' संज्ञा फ्राइड की 'काम' सज्ञा है। उसने इसके लिए 'लिबिडो' शब्द का प्रयोग किया है। जिसका वास्तविक अर्थ है सुख की चाह । सभोग तो उसका एक भाग है। काम सज्ञा प्रत्येक प्राणी मे होती है। इसे हम वेद नोकषाय मोहनीय कर्म के अन्तर्गत रख सकते हैं । इन सभी संज्ञाओं के उद्दीपक और अनुप्रेरणात्मक कारण हुआ करते हैं जो औतिक और सामाजिक दोनों प्रकार के होते हैं। इन्हें हम सवेग अथवा मनोदशा कह सकते है जिनकी उत्पत्ति चेतना के विभिन्न स्तरों पर होती है।
कामवृत्ति को जगाने मैं भूलकारण तो वेदमोहनीय कर्म है जो आन्तरिक है, उपादानकारण है, परन्तु बाह्य कारण सीनिमितकारण है-कुछ शारीरिक कारण और कतिपय नैमित्तिक वातावरण | अशभ सस्कार भी उसमें कारण होते हैं,
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