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________________ 5. प्रेरणा अथवा सहायता करने के विषय में 6. राज्यविरुद्ध अपराधों के विषय में w 7. सेना सम्बन्धी अपराधों के विषय में 8. सार्वजनिक शान्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में 9. राज्य कर्मचारियों द्वारा या उनसे सम्बन्धित अपराधों के विषय में तत्वार्थसूत्र- 7427 14. सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा सुविधा सदाचार तथा शिष्टाचार के विरुद्ध अपराधों के विषय में 5. 107-120 पाँच अणुव्रत एवं उनके अतिचार J 15. धर्म सम्बन्धी अपराध 16. मानव शरीर के विरुद्ध अपराधों के विषय मे 17. सम्पत्ति सम्बन्धी अपराध 18. दस्तावेजों तथा व्यापार अथवा सम्पत्ति चिह्नों से सम्बन्धित अपराधों के विषय में ६, 121 130 विरुद्ध - राज्यातिक्रम त्याग 7. 131 - 140 में विरुद्धराज्यातिक्रम त्याग 10. राज्य कर्मचारियों के प्राधिकार की अवमानना के विषय 10. 172-190 में विरुद्धराज्यातिक्रम का त्याग में 11. झूठी गवाही और सार्वजनिक न्याय के विरुद्ध अपराध 141 - 160 में अहिंसाणुव्रत एवं उसके 5 अतिचार 9. 161-171 में असत्य के अतिचार एवं अचौर्य तथा उसके अतिचार 12. सिक्क तथा सरकारी स्टाम्प सम्बन्धी अपराधों 12. 230-263 में प्रतिरूपक व्यवहार एवं विरुद्ध राज्यातिक्रम त्याग 13. माप-तौल सम्बन्धी अपराध 11. 191 229 में असत्य मिथ्या आरोपण विरुद्ध राज्यातिक्रमत्याग 13. 264-267 में हीनाधिक मानोन्मान अतिचारों का त्याग 14. 268-294 में अहिंसा, सत्य तथा इनके समस्त अतिचारों का त्याग 15. 295-298 में उपर्युक्त 16. 299-377 में निरतिचार (निर्दोष) अहिंसाणुव्रत का पालन करना 17. 378 - 462 में निरतिचार अचौर्याणुव्रत का पालन 18. 463-489 में कूटलेखक्रिया और प्रतिरूपक व्यवहारत्याग 19. सेवा संविदाओं (शर्तनामों) सम्पत्ति चिह्नों के विरुद्ध 19.490-492 में सत्याणुव्रत का पालन आपराधिक भंग के विषय में 20. विवाह से सम्बन्धित अपराध 21. मानहानि 22. आपराधिक अभित्रास (धमकी देना) अपमान तथा क्लेश देने के अपराध में 20. 493-498 में परस्त्री - कामना का त्याग 21. 499-502 में सत्याणुव्रत के और रहोभ्याख्यान अतिचार का त्याग 22. 503-510 में सत्याणुव्रत के अतिचार का त्याग 23. अपराध करने के प्रयत्न के विषय में 23. 511 में पाँचों अणुव्रतों का निर्दोष पालन इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र सार्वकालिक, सार्वभौमिक एव शाश्वत स्वरूप का दिग्दर्शन कराता है। वहीं भारतीय दण्ड विधान भारत में भी जम्मूकश्मीर को छोड़कर शेष भारत में लागू होता है और केवल आपराधिक क्रिया होने पर दण्ड की व्यवस्था करता है। अतः जहाँ तत्त्वार्थसूत्र की कोई उपमा नहीं की जा सकती वहीं भारतीय दण्ड विधान सामाजिक रूप से व्यक्ति की जीवन, सम्पत्ति आदि की सुरक्षा व्यवस्था से सम्बन्ध रखता है।
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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