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118/स्वार्थमा-निक पाव के मेव
पयि दो प्रकार की होती हैं - द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय, अथवा व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय ।' दोनों शुद्ध और अशुद्ध के भेद से दो प्रकार की होती हैं। एक गुण की एक समयवर्ती पर्याय को गुणपर्याय कहते हैं तथा अनेक गुणों के एक समयवर्सी पर्यायों के समूह को द्रव्यपर्याय कहते हैं। जैसे - आम का खट्टापन और मीठापन गुणपर्याय हैं, क्योंकि इसमें एक गुण की मुख्यता है तथा आम का कच्चापन और पक्कापन या आम का छोटा-बड़ा होना द्रव्यपर्याय है, क्योंकि ये आम के सभी गुणों के सामुदायिक परिणमन का फल है अथवा द्रव्य के आकार या संस्थान सम्बन्धी पर्याय को द्रव्यपर्याय तथा उससे अतिरिक्त अन्य गुणों के पर्याय को गुणपर्याय कहते हैं। द्रव्य और गुणपर्याय का यह भी लक्षण पाया जाता
गुणपर्याय उस गुण की एक समय की अभिव्यक्ति है और गुण उसकी त्रिकालगत अभिव्यक्तियों का समूह है। उसी प्रकार त्रिकालवर्ती समस्त गुणों का समूह द्रव्य है और सकल गुणो के एक समय के पृथक्-पृथक् पर्यायों के समूह का नाम द्रव्यपर्याय है । गुणपर्याय तथा गुण और द्रव्यपर्याय तथा द्रव्य में यही अन्तर है।
अर्थपर्याय व व्यंजनपर्याय का लक्षण भिन्न प्रकार से भी किया गया है। द्रव्य में होने वाले प्रतिक्षणवर्ती परिवर्तन को अर्थ पर्याय तथा इन परिवर्तन के फलस्वरूप दिखाने वाले स्थूल परिवर्तन को व्यंजनपर्याय कहते हैं। प्रत्येक स्थूल परिणमन किन्हीं सूक्ष्म परिणमनों का ही फल है, जो कि सत्तर वर्षीय वृद्ध के उदाहरण से स्पष्ट है। दोनों प्रकार की पर्याय शुद्ध-अशुद्ध के भेद से दो प्रकार की होती हैं। उसमे शुद्धद्रव्य की दोनों पर्यायें शुद्ध होती हैं तथा अशुद्ध द्रव्य की दोनों ही पयिं अशुद्ध ही होती हैं। मुक्त जीव तथा पुद्गल के शुद्ध परमाणु की दोनों ही पर्यायें शुद्ध होती हैं तथा ससारी जीव और पुदगल स्कन्धों की दोनों ही पर्यायें अशुद्ध । यही पर्यायों का संक्षिप्त परिचय है ।
पंचास्तिकाय, तात्पर्यवृत्ति 16
४.म. प्रतिसमयपरिणतिरूपा अर्थपर्याया: भण्यन्ते । -प्रवचनसार, तात्पर्यवृत्ति, 1/8) ...ब.स्पूमा कालान्तरस्थायी सामान्यज्ञानगोचराः ।
टिनाबस्तु पर्यायो भवेद् व्यञ्जनसंशकः ।। - भावसंग्रह, 377