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________________ (आकाश के एक प्रदेश पर स्थित एक परमाणु मंदमति द्वारा निकटस्थ आकाश प्रदेश पर जिसने काल में पहुँच जाता है, वह 'समय' (Unit of time) कहलाता है 1) 94. 2. संख्यात मावलिका = 1 उच्छ्वास 3. 1 श्वासोच्छ्वास को प्राण कहते हैं सात प्राण = 1 स्तोक 4. 7 स्तोकों का एक लव 5. 7 लव का 1 मुहूर्त 6. 30 मुहूर्त = 24 घण्टे ( 1 अहोरात्र) (1 मुहूर्त = 48 मिनिट) 7. 30 अहोरात्र = 1 मास 8. 12 मास = 1 वर्ष समय का माप सूर्यचन्द्र की गति के आधार पर भी किया जा सकता है। द्रव्यसंग्रह में व्यवहारकाल को इस प्रकार निरूपित किया है। दव्यपरिवहरूवो जो सो कालो हवे ववहारो ॥ अर्थात् जो द्रव्यों के परिवर्तन में सहायक, परिणामादि लक्षण से युक्त है वह व्यवहारकाल है। पंचास्तिकाय ग्रन्थ में लिखा है - समय निमेष, काष्ठा, काल, घड़ी, अहोरात्रि, मास, ऋतु, अयन और वर्ष ऐसा जो काल (व्यवहारकाल ) है, वह पराश्रित है । इस आलेख का उपसंहार करते हुए एक बात विशेष रूप से कह देना चाहता हूँ कि प्राचीन समय में धर्म एवं दर्शन का उद्भव मात्र श्रद्धा जनित नहीं था । धर्म के पीछे विज्ञान की भांति विचार, तर्क युक्ति और कारण रहे। एक विचार देकर अपना आलेख समाप्त करना चाहूँगा कि क्या धर्म की तरह विज्ञान भी सम्यग्दर्शन की साधना और सम्यग्ज्ञान की आराधना का हेतु बनाया जा सकता है ? छहढाला (पं. दौलतरामकृत) में 'वीतराग विज्ञान' शब्द जैनधर्म की ऐवज में प्रयोग किया गया है। जो यह बात स्पष्ट करता है कि जैसे विज्ञान प्रयोगों के द्वारा सत्यान्वेषण की दिशा में लगा है उसी तरह अध्यात्म - 'तप' के प्रयोगों के द्वारा आत्मानुसन्धान की प्रशस्त राह पा सकता है। जो विज्ञान हमें वीतरागता की ओर उन्मुख कर दे वही विज्ञान का आध्यात्मीकरण है।
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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