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________________ जनामा मात्र स्कंधोत्पति की विभिन्न प्रक्रियाओं को ही नहीं समझाया है, बल्कि उन बिंदुओं पर भी समुचित प्रकाश डाला है जो. स्कंधोत्पत्ति के लिये आवश्यक हैं । इसी संदर्भ में आचार्य उमास्वामी बतलाते हैं कि 'नियमवा " अर्थात् स्निग्ध-स्निग्ध, रूक्ष-रूक्ष एवं स्निग्ध-लक्ष गुण वाले परमाणु परस्पर बंध करने में समर्थ होते हैं। " . इस कथन के वैज्ञानिक विश्लेषण के पूर्व स्निग्ध एवं रूक्ष गुणों को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है। तत्व मूलतः (धातु एवं अधातु) दो प्रकार के होते हैं। वह तत्त्व जो प्रकृति से वैद्युत घनीय, क्षारीय गुण वाले तथा कम वैद्युत ऋणात्मकता वाले होते हैं उन्हें धातु तत्त्व कहा जाता है जैसे सोना, चाँदी, पारा, तांबा, जस्ता, आदि। इन सभी में स्वाभाविक स्निग्धता (चिकनापन) पाई जाती है तथा वह तत्त्व जो प्रकृति से वैद्युत ऋणीय, अम्लीय गुण वाले एवं धातु तत्त्वों की तुलना में अधिक वैधुत ऋणात्मक वाले होते हैं अधातु तत्त्व कहलाते हैं। जैसे सिलीकान, बोरोन, हीरा (कार्बन), सल्फर (गंधक), फ्लोरीन, ब्रोमीन आदि। इन सभी में स्वाभाविक रूक्षता (रूखापन) पाया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि आचार्य उमास्वामी द्वारा स्निग्ध गुण धात्विक परमाणुओं का तथा रूक्ष गुण अधात्विक परमाणुओं का माना गया है। बज्ञानिक विश्लेषण वैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा धातु-धातु, अधातु-अधातु एवं धातु-अधातु परमाणु परस्पर बंध निर्माण करने में सक्षम होते हैं। स्निग्धगुणयुक्त धात्विक परमाणु + स्निग्धगुणयुक्त धात्विकपरमाणु→ परिणाम 1. तांबा (Cu) + जस्ता (जिंक) (Zn) + निकिल (Ni) → जर्मन सिल्वर 2. लोहा (Fe) + निकिल (Ni) + क्रोमियम (Cr) → स्टेनलेस स्टील 3. जस्ता (Zn) + एल्युमीनियम (AI) + कॉपर (Cu) → सफेदकांसा(गोटा चाँदी) 4. तांबा (Cu) + जस्ता (Zn) → पीतल 5. सांबा (Cu) +वंग (Sn) → कांसा 6. सांबा (Cu) + एल्युमीनियम (AI) . रोल्डगोल्ड 7. सीसा (Pb) +वंग (Sn) →टांका धातु 8. लोहा (Fe) + निकल (Ni) रूपानन वाले मजाकिरमानु+माग माले बधालिक परमाणु → परिणाम 1. नाइट्रोजन (N) + हाइड्रोजन(3H.) soorc अमोनिया (2NH) 2. नाइट्रोजन(N) . + क्लोरीन(3CI) 200 ARPe) नाइट्रोजन ट्राय क्लोराइड ' (2NCL) वैचुत 3. हाइड्रोजन(2) + ऑक्सीजन(0) विम अल (2H,0) 1. तत्वार्थ सूत्र (5/1) -
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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