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________________ 5. अधातु तत्व जैसे सिलीकान, बोरॉन, हीरा (कार्बन) क्लोरीन, ब्रोमीन, फ्लोरीन आदि रूक्ष तत्व हैं। इन तत्वों की वैद्युत ऋणात्मकता धातु तत्त्वों की तुलना में अधिक तथा स्वभाव से अम्लीय होते हैं । उक्त बिन्दुओं को आधार मानकर स्कंध निर्माण की तीनों प्रक्रियाओं को रासायनिक समीकरणों के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। दर्शन पौद्गलिक स्कंधों एवं उनके परमाणुओं का आधुनिक रसायन विज्ञान में जो विशद् विवेचन-विश्लेषण हमें प्राप्त होता है उसी प्रकार का सूक्ष्म एवं प्रमाणिक विवेचन हजारों वर्ष पूर्व अनेक जैन दर्शनकारों ने किया है। इन दर्शनकारों में आचार्य उमास्वामी का स्थान प्रमुख है। तत्त्वार्थ सूत्र नामक उनके ग्रंथ में पौद्गलिक स्कधों का जैसा सांगोपांग विवेचन हुआ है और उनके निष्कर्ष जिस तरह आधुनिक रसायन विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरे हैं उन्हें देखकर आश्चर्य होता है। आचार्य उमास्वामी ने पौद्गलिक स्कंध की विवेचना में पुद्गल, पुद्गल के गुण, पुद्गल के भेद, पुद्गल की पर्याय, पुद्गल परमाणु, पौद्गलिक स्कंध (MOLECULE) और उनके निर्माण की प्रक्रिया आदि विषयों पर जो अवधारणायें प्रस्तुत की हैं उनको देखकर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि जैन दर्शनकारों की भेदविज्ञान दृष्टि अत्यत सूक्ष्म एवं विशद थी। परमाणु - जैन दर्शन की हि में जैन दर्शन में परमाणु से तात्पर्य पुद्गल के उस लघु से लघु अंश से है जिसे और विभाजित न किया जा सके अर्थात् जो एक प्रदेशी है।' आचार्य अकलंक देव ने परमाणु की विशेषता बतलाते हुए कहा है कि सभी पुद्गल स्कंध परमाणुओं से निर्मित है और परमाणु पुगल के सूक्ष्मतम अंश हैं। परमाणु नित्य, अविनाशी और सूक्षम है। वह दृष्टि द्वारा लक्षित नहीं हो सकते । परमाणु में कोई एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श (स्निग्ध अथवा रूक्ष, शीत अथवा ऊ ष्ण) होते हैं। परमाणु के अस्तित्व का अनुमान उससे निर्मित पुद्रल स्कंध रूप कार्य से लगाया जा सकता है। जैन दर्शनकारों ने अणु एवं परमाणु को समानार्थक माना है। परमाणु - विज्ञान की दृष्टि में डाल्टन नामक वैज्ञानिक का विचार था कि परमाणु द्रव्य का सूक्ष्मतम एव अविभाज्य कण है। यह धारणा उनीसवीं शताब्दी के अंत तक सही मानी गई किन्तु बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में थामसन, रदरफोर्ड एवं चेडविक आदि वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु द्रव्य का अंतिम कण नहीं हैं इसकी भी अपनी एक विशेष प्रकार की संरचना है एवं यह तीन प्रकार के मौलिक कणों इलैक्ट्रॉन, प्रोटान व न्यूट्रॉन से मिलकर बना है। रदरफोर्ड की अपनी भाषा में 'Atom has a definite structure. It consists of a massive and positively charged central purt which is called Nucleus of the Atom. The Nucleus is surrounded by negatively charged moving small particles called Electrons. The Atom is about ten thousand times larger than its Nucleus. The Nucleus of an Atom is composed of proton, positively charged patricles and neutral particles neutron and about a dozen of smaller particals like positron, meson, pions and nutrino, etc. The sum of the masses of the protons and neutrons is called Atomic mass." १. मानो:, तस्थार्थसूत्र, 5/11, 31 २. तत्त्वार्थ राजवार्तिक, आचार्य अकलंक देव, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, अध्याय : 5 कारणमेव वदन्त्यः सूक्ष्मो नित्यो भवेत्परमाणु । एकरसगंधवर्णा द्विस्पर्शः कार्यलय ||
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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