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पोटालिक स्कन्धी का वैज्ञानिक विश्लेषण
____ * अजित कुमार जैन
सारांश:- प्रस्तुत आलेख का मूल प्रतिपाद्य विषय आचार्य उमास्वामी द्वारा निरूपित पौदगलिक स्कंध और उनके निर्माण की प्रक्रिया, स्कंध निर्माण हेतु आवश्यक बिन्दु एवं निर्मित स्कंध की प्रकृति को आधुनिक रसायन विज्ञान के आलोक में समझना है।
प्रस्तुत आलेख में निम्नांकित सूत्रों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।
1. वसंचातेभ्य उत्पद्यन्ते (अध्याय - 5 सूत्र नं. 27)
2. वसंचाताभ्यां चाक्षुषः (अध्याय - 5 सूत्र नं. 28 ) - 3. स्निग्धरूक्षलाद बंध: (अध्याय - 5 सूत्र नं. 33 )
4. न जघन्यगुणानाम् (अध्याय - 5 सूत्र नं. 34 ) 5. गुण-साम्ये सदृशानाम् (अध्याय - 5 सूत्र नं. 35 ) 6. उपधिकादिगुणानां तु (अध्याय - 5 सूत्र नं. 36 )
1. बंधेधिको पारिणामिकी च (अध्याय - 5 सूत्र नं. 37) । प्रस्तावना :- उपर्युक्त सूत्रों का विश्लेषण निम्नांकित बिन्दुओं पर आधारित है।
1. विज्ञान मान्य परमाणु जैन दर्शनकारों की दृष्टि से स्कंध माना जायगा क्योकि परमाणु के नाभिक में तीन प्रकार के मौलिक कण उपस्थित रहते हैं।
2.जैन दर्शन में अणु एवं परमाणु समानार्थक हैं, जबकि विज्ञान में अणु को परमाणु से भिन्न माना गया है। विज्ञान मान्य अणु की उत्पत्ति दो या दो से अधिक समान परमाणुओं अथवा असमान परमाणुओं के योग से मानी गयी है।
3. भाचार्य उमास्वामी ने "स्निग्धरूक्षत्वाबंधः" नामक सूत्र में जो स्निग्ध एवं रूक्ष परमाणुओं का उल्लेख किया है वास्तव में उनका स्निग्ध परमाणुओं से तात्पर्य धात्विक परमाणुओं एवं रूक्ष परमाणुओं से तात्पर्य अधात्विक परमाणुओं से रहा होगा । (तत्त्वार्थ राजवार्तिक, पेज नं. 700)
धातु तत्त्व जैसे सोमा, चाँदी, लोहा, जस्ता आदि स्निग्ध तत्त्व (Element) हैं। इन तत्वों की वैद्युत ऋणात्मकता (परमाणुओं का एक विशिष्ट गुण) अधातु तत्त्वों के परमाणुओं की तुलना में कम होती है एवं यह तत्त्व क्षारकीय गुण वाले
प्राध्यापक रसायन शास्त्र, सेठ सितावराय लक्ष्मीचंद जैन महाविद्यालय, विदिशा (म.प्र.)