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184/कार्य-निकव
क्षण-क्षण बदलती दशा के ही परिणाम है। ये सब भी धरातलीय स्वरूप में परिवर्तन लाते हैं। इसी तरह स्थलमण्डल के 'परिवर्तन में भूकम्प, ज्वालामुखी आदि आन्तरिक शक्तियाँ हैं।
इस तरह आधुनिक एवं जैन भूगोल के आधार से निम्न बातें उभर का आती हैं। यथा
1. सृष्टि का आदि हैं और अन्त भी होगा ।
2. लोक की कोई सुनिश्चित अवधारणा नहीं है। इसका कोई आकार भी नहीं है।
3. सूर्य स्थिर है। पृथ्वी आदि ग्रह उसका चक्कर (परिक्रमा) लगाते है
4. सूर्य एक गरम गैसीय स्वयं प्रकाशवान पिण्ड है और सभी ग्रहों का जनक है। सभी ग्रह प्रकाश तथा उष्मा सूर्य से ही प्राप्त करते हैं। पृथ्वी की चाँदनी सूर्य प्रकाश की प्रतिच्छाया है।
5. पृथ्वी आदि सभी ग्रह गोलाकार हैं।
6. आधुनिक भूगोल में स्वर्गों-नरकों की कोई कल्पना / अवधारणा नहीं हैं ।
7. पृथ्वी अपनी धुरी पर परिभ्रमण करती है, जिससे दिन-रात होते हैं तथा अपने ग्रह-पथ पर सूर्य के चारो ओर परिभ्रमण करती है, जिससे ऋतु परिवर्तन होते है। पृथ्वी 365. 25 दिन में सूर्य का एक चक्कर लगा लेती है।
पृथ्वी की दैनिक गति से रात-दिन होते है और वार्षिक गति से ऋतुएं बदलती है। वार्षिक गति से ही उत्तरायणदक्षिणायन होते हैं।
8. आधुनिक भूगोल का दृश्य जगत इस पृथ्वी ग्रह पर विद्यमान 6 महाद्वीप, 5 महासागरो सहित छोटे-छोटे द्वीप और समुद्रो तक सीमित है ।
9. इसके भौगोलिक तथ्य सीमित हैं।
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10. इसके तथ्य साव्यवहारिक प्रत्यक्ष हैं ।
11. आन्तरिक एवं बाह्यशक्तियों द्वारा धरातलीय स्वरूप में निरन्तर परिवर्तन जारी है। पर्वतों का निर्माण / महाद्वीपों का प्रवहण / तटों का उन्मज्जन- निमज्जन, पठारो-मैदानो के धरातलीय स्वरूपों का बनना-बिगड़ना आदि ।
12. भौगोलिक तथ्यों (स्थलीय दूरियो समुद्री दूरियाँ गहराई / तापमान / वर्षा / आर्द्रता / वायुभार / गति / शक्ति आदि) को नापने के लिए आधुनिक भूगोल में विभिन्न मापक निर्धारित किये गये है।
1. सृष्टि अनादि अनिधन है।
2. लोक की सुनिश्चितता है और इसका आधार भी सुनिश्चित है।
3. पृथ्वी स्थिर है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र आदि अपने-अपने पथ पर सुमेरु पर्वत की परिक्रमा करते हैं (केवल मनुष्य लोक में, इसके बाहर सभी स्थिर हैं ।)
4. सभी ज्योतिष्कों में चन्द्रमा इन्द्र है, सूर्य प्रतीन्द्र है। इन सभी विमानों से किरणें फैलती हैं। सूर्यविमान से गरम और चन्द्रविमान से शीतल किरणें निकलती हैं।