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फुलचन्द्र शास्त्री ने सर्वार्थसिद्धि के विशेषार्थ में स्वयं लिखा है कि हास्य और रति का उत्कृष्ट उदयकाल सामान्यत: छ: माह है। इसके बाद इनकी उदय-उदीरणा न होकर अरति और शोक की उदय-उदीरणा होने लगती है। किन्तु छह माह के भीतर यदि हाय रिति विरुद्ध निमित्त मिखता है जो बीच में ही इनकी उदय प्रदोरमा जानती है। इसी प्रकार स्वर्ग में सातानिमित्तक सामग्री होने से असाता उदयकाल में सातारूप में परिणत हो जाती है तथा नरक में असातानिमित्तक सामग्री होने से साता उदयकाल में असाता रूप में परिणत हो जाती है । पूज्यपाद स्वामी ने लिखा है - 'ब्यादिनिमित्तवशात् कर्मणां फल-प्राप्तिरुदयः ।"
'को भवः ? बाधुमिकर्मोदयनिमित्त: माल्मनः पर्यायो भवः । प्रत्ययः कारणं निमित्तमित्यनन्तरम्। प्रान्ति 3. - निमित्त को कारण मानने से द्रव्य की स्वतन्त्रता में बाधा होती है।
समाधान - उक्त प्रश्न के उत्तर में आचार्य अकलंकदेव का कहना है कि धर्मादि द्रव्यों के निमित्त से ही जीव एवं पुदगल की गति-स्थिति संभव होती है। क्या ऐसा मानने से जीव अपने मोक्ष पुरुषार्थ में असमर्थ हो जाता है ? यदि नहीं, तो निश्चित है कि कार्योत्पत्ति में परद्रव्य के निमित्त मात्र होने से वस्तु स्वातन्त्र्य में कोई बाधा नहीं आती है।
इसी प्रकार की अन्य अनेक भ्रान्तियाँ भी निरपेक्ष नयों को ग्रहण करने से उत्पन्न हुई हैं। अत: नयों में सापेक्षता आवश्यक है।
१. वही 9/36 का विशेषार्थ
३. सर्वार्थसिद्धि,