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जैन पूजा पाठ समह
कठिन बचन जति बोल, पर-निन्दा अरु झूठ तज । सांच जवाहर खोल, सतवादी जगमें सुखी ॥४॥
कीजै ।
पेखो ॥
दीजिये ।
लीजिये ||
धरमका भूपति भया । गया ॥ ४ ॥
उत्तम सत्य-वरत पालीजै, पर विश्वासघात सांचे झूठे मानुप देखो, मानुष देखो, पेखो तिहायत पुरुष सांचेको, मुनिराज श्रावककी प्रतिष्ठा, ऊंचे सिंहासन बैठ बसु नृप, वसु झूठ सेती नरक पहुँचा, सुरग में नारद
ॐ ह्रीं उत्तम सत्य धर्माङ्गाय अघं निर्वपामीति स्वाहा ।
नहिं
आपन पूत स्वपास न
दरव सब
सांचगुन लख
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धरि हिरदै सन्तोष, करहु तपस्या देहलों । शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में ||५|| उत्तम शौच सर्व जग जानो, लोभ पापको are aarat | आशा - पाश महा दुखदानी, सुख पावै सन्तोषी प्रानी ॥ प्रानी सदा शुचि शील जप तप ज्ञानध्यान प्रभावतें । नित गंग-जमुन समुद्र न्हाये, अशुचि-दोष सुभावतें ।।
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ऊपर अमल मल भयो भीतर, कौन विधि घट शुचि कहै ॥ बहु देह मैली सुगुन- थैली, शौच-गुन साधु लहै || ||
ॐ ह्रीं उत्तम शौच धर्माङ्गाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
काय छहों प्रतिपाल, पंचेन्द्री सन वश करो । संजम - रतन संभाल, विषय चोर बहु फिरत हैं || ६ ||