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जैन पूजा पाठ सप्रह
दशलक्षण धर्म पूजा
अडिल्ल— उत्तम छिया मारदव आरजव भाव हैं ।
सत्य शौच संजय तप त्याग उपाव हैं ।। आकिंचन ब्रह्मचर्य धरम दश तार हैं। चहुँगति दुखतें काढ़ि सुकृति करतार हैं ॥१॥
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! क्षत्र अवतर अवतर सवौषट् । 'ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र निष्ठ तिष्ठ ठ ठ |
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
सोरठा ।
हेमालकी धार, सुन्दि-चित सम शीतल सुरस्थि । सव- आताप निवार, दस-लक्षण पूजौं सदा ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षण धर्माय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ १॥
चन्दन केशर गार, होय सुवास दशदिशा ॥ भव०
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा दिदशलक्षण धर्माय चन्द्रन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥
अमल अखंडित सार, तंदुल चन्द्रमान शुभ ॥ भगव
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षण धर्माय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥
फूल अनेक प्रकार, महर्के ऊरलोकलों ॥ भव
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा दिदशलक्षण धर्माय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥