________________
लेन पूजा पाठ समक
चौपाई १६ मात्रा । दरश विशुद्ध धरे जो कोई। ताको आवागमन न होई । विनय महा धार जो पानी। शिव-वनिता की ससी वखानी ॥२॥ शील सदा दिढ़ जो नर पाले। सो औरनकी आपद टालै॥ ज्ञानाम्यास कर मनमाही। ताके मोह-महातम नाहीं ॥३॥ जो सदेग-भाव विस्तारै । सुरंग-मुकति-पद आप निहारै। दान देय मन हरप विशेख । इह भव जस परभव सुख देखे ॥४॥ जो तप तपै सपे अभिलापा । चूरे करम-शिसर गुरुभाषा ॥ साधु-समाधि सदा मन लावै । तिहुँजगभोग भोगि शिव जावै॥शा निनि-दिन वैयावृत्य करैया । सो निहचे भव-नीर तिरैया ॥ जो अहंत-भगति मन आने । सोजन विषय कपाय न जाने ॥६॥ जो आचारज-भगति करै है। सो निर्मल आचार धरै है। व तन्त-भगति जो करई। सो नर संपूरन श्रुत धरई ॥७॥ प्रवचन-नगति करें जो ज्ञाता । लहै ज्ञान परमानन्द-दाता ॥ पट आवश्य काल जो साधै । सो ही रत-त्रय आराधै ॥८॥ भरम-प्रभाव करें जो ज्ञानी । तिन शिव-मारग रीति पिछानी॥ वत्तल अड सदा जो ध्या। सो तिथकर पदवी पावै ॥६॥
ॐ हीं दर्शनपिशुद्धयाटिपोटशफरणेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति र वादा । दोहा-एही सोहल भावना, सहित धरै व्रत जोय । देव-इन्द्र-नर-पंद्य-पद, 'द्यानत' शिवपद होय ॥ १०॥
[आशीर्वाद