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जेन पूजा पाठ सप्रह
बिंब अठ एक सौ रतनमयि सोहही। देव देवी सरव नयन मन मोहही ।। पाचसै धनुष तन पद्मआसन परं। भौन वावन्न प्रतिमा नमों सुखकर ।। लालनख मुख नयनश्याम अरु श्वेत हैं । श्याम रंग भोंह सिर केश छवि देत हैं ।। बचन बोलव मनो हसत कालुष हर । भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं ।। कोटिशशिभानुदुति तेज छिप जात है। महावैराग परिणाम ठहरात है ।। वयन नहिं कह लखि होत सम्यक् धर! भौन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकर ॥ सोरठा-नंदीश्वर जिनधाम, प्रतिमा महिमाको कहै।
'चानत' लीनो नाम, यहै भगतिशिव सुखकरै ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाराज्जिनालयस्थचिनप्रतिमान्यो पूर्णाघ निर्वपामीति स्वाहा ।
आत्म - विश्वास • "मुझ से क्या हो सकता है ? मैं क्या कर सकता हूँ? मैं असमर्थ हूँ,
दीन-हीन हूँ ऐसे कुत्सित विचारवाले मनुष्य आत्म-विश्वास के अभाव में
कदापि सफल नहीं हो सकते। - जिस मनुष्य में आत्म-विश्वास नहीं, वह 'मनुष्य' कहलाने का अधिकारी
नहीं।
• जिन्हें अपने भात्मवल पर विश्वास नहीं, उन्हें संसार सागर की तो बात जाने दो, गाँव की मेंढक तरण-तलैया भी भारी है।
-~-'वर्णी वाणी' से