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जैन पूजा पाठ मह
उत्तम अक्षत जिनराज, पुंज धरे सोहै । सब जीते अक्ष-समाज, तुम सम अरुको है । नंदी० ॥३॥
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ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमाभ्योअक्षय पदप्राप्तये अक्षत निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥
तुम काम विनाशक देव, ध्याऊं फूलन सौं । लहिशील लक्ष्मी एव, छूटूं सूलन सौं ॥ नंदी० ||४||
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाशज्जिनालयस्यजिनप्रतिमाभ्यो कामवाणविध्वसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥
नेवज इन्द्रिय-बलकार, सो तुमने चूरा | चरु तुम ढिग सोहै सार, अवरज है पूरा ॥ नंदी० ॥ ५ ॥
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमाभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥
दीपक की ज्योति प्रकाश, तुम तन मांहिं लसै ।
टूटै करमनकी राश, ज्ञानकणी दरसे || नंदी० ॥६॥
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाराज्जिनालय स्थजिनप्रतिमाभ्यौ मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
कृष्णागरु धूप- सुवास, दश - दिशि नारि वरै । अति हरष-भाव परकाश, मानो नृत्य करें | नंदी० ॥७॥
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाशज्जिनालय स्थजिनप्रतिमाग्यो अष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥