SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ जैन पूजा पाठ समह पंचमेरू पूजा तीर्थंकरों के न्हवन - जलतैं, भये तीरथ शर्मदा । तातें प्रदच्छन देत सुरगन, पंचमेरून की सदा ॥ दो जलधि ढाई द्वीपसें, सब गनत मूल विराजहीं । पूजौं असी जिनधाम - प्रतिमा, होहिं सुखदुख भाजहीं ॥ ॐ ह्रीं पंचमेरूसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ॐ ह्रीं पचमेरुसम्वन्धिजिनचे त्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ ह्रीँ पचमेरूसन्धिजिनचैत्यालयस्यजिनप्रतिमासमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अथाष्टक | चौपाई आंचलीबद्ध ( १५ मात्रा ) शीतलसिष्ट सुवास मिलाय, जलसों पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ यांचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमाको करों प्रणाम । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं पचमेरुसम्वन्धिजिनचैत्यालयस्यजिनबिम्बेभ्यो जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ जल केशर करपूर मिलाय, गंधसों पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ पांचों०॥२॥ ॐ ह्रीं पचमेरुसम्वन्धिजिनचैत्यालयस्थजिन विम्बेस्यो चन्दन निर्वपामीति स्वाहा । अमल अखंड सुगंध सुहाय, अच्छतसौं पूजौं जिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ पांचों०॥३ ॥ ॐ ह्रीं पंचमेश्सन्वन्तिजिन चैत्यालयस्थाजिनबिम्बेभ्यो अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । い
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy