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________________ जैन पूजा पाठ सप्रह नरामरवंदित निर्मल भाव, अनन्तमुनीश्वरपूज्य विहाव | सदोदय विश्वमहेश विमोह, प्रसीद, विशुद्ध सुसिद्धसमूह ||७|| चिदंभ वितृष्ण विदोष विनिद्र, परापर शंकरसार वितिंद्र | विकोप विरूप विशंक विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ||८|| जरामरणोज्झित वीतविहार विचितित निर्मल निरहंकार । अचित्यचरित्र विदर्प विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥६॥ विवर्ण विगंध विमान विलोभ, विमाच विकाय विशब्द विशोभ । अनाकुल केवल सर्व विमोह, प्रसीद विशुद्ध, सुसिद्धसमूह ||१०|| घत्ता - असमयसमयसारं चारुचैतन्यचिन्हं, परपरणतिमुक्तं पद्मनंदीन्द्रवंद्यं । ५२ निखिल गुणनिकेतं सिद्धचक्रं विशुद्ध, स्मरति नमति यो वा स्तौति सोऽभ्येति मुक्ति ॥ ॐ ह्रीं सिद्धचकाधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने महार्घं निर्वपामीति स्वाहा । अडिल छन्द । अविनाशी अविकार परमरसधाम हो । समाधान सर्वज्ञ सहज अभिराम हो । शुद्धबुद्ध अविरुद्ध अनादि अनंत हो । जगत शिरोमणि सिद्ध सदा जयवंत हो || १ ॥ 8 ध्यान अगनिकर कर्म कलंक सबै दहे, नित्य निरञ्जनदेव सरूपी है रहे ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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