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उससे भी कही अधिक उनकी आत्माका दिव्य तेज था। अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्तवीर्य गुणोके समावेशने उनके आत्मतेजकोअलौकिक बना दिया था। निष्कामभावसे जनकल्याण करनेके कारण उनका आत्मबल अनुपम था। वे ससार-सरोवरमे रहते हुए भी कमलपत्रवत् निर्लिप्त थे । उनका यह व्यक्तित्व पुरुषोत्तम विशेषणसे विशिष्ट किया जा सकता है ।
यो तो महावीरके व्यक्तित्वमे एक महामानवके सभी गुण प्राप्य थे, पर वे एक सच्चे ज्ञानी, मुक्ति-नेता, कुशल उपदेष्टा और निर्भीक शिक्षक थे । जो भी उनकी वाणी सुनता, वही उनकी ओर आकृष्ट हो जाता । वे ऐसे ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी थे, जिन्हे 'घोरवभचेर' कहा गया है । ब्रह्मचर्यको उत्कृष्ट साधना और अहिंसक अनुष्ठानने महावीरको पुरुषोत्तम बना दिया था । तप पूत भगवान् महावीर तीर्थकर पुरुषोत्तम थे । श्रेष्ठ पुरुषोचित सभी गुणोका समवाय उनमे प्राप्त था। निःस्वार्थ
महावीरके व्यक्तित्वमे निस्वार्थ सावकके समस्त गुण समवेत है । वे तपश्चरण और उत्कृष्ट शुभ अध्यवसायके कारण निरन्तर जागरूक थे। उन्हे सभी प्रकारको ऋद्धि-सिद्धियाँ ऊपलब्ध थी,पर वे उनसे थे निलिप्त, आत्मकेन्द्रित, शान्त और वीतराग । आत्मापर कठोर सयमकी वृत्ति रखनेके कारण उनमे विश्व बन्धुत्व समाहित था।
महावीर न उपसर्गोसे ही घबराते थे और न परीषह सहन करनेसे ही । वे सभी प्रकारके स्वार्थ और विकारोको जीतकर स्वतन्त्र या मुक्त होना चाहते थे । अनादिकालसे चैतन्य-ज्योति आवरणोसे आच्छादित है । जिसने इन आवरणोको हटाकर बन्धनोको तोडा है, जो सकल्प-विकल्पोसे मुक्त हुआ है और जिसने शरीर और इन्द्रियोपर पडी हुई परतोको हटाया है, वही नि स्वार्थ जीवन यापन कर सकता है। तीर्थंकर महावीरके व्यक्तित्वमे यह निस्वार्थकी प्रवृत्ति पूर्णतया वर्तमान थी।
वस्तुत तीर्थंकर महावीरके व्यक्तित्वमे एक महामानवके सभी गुण विद्यमान थे। वे स्वयबुद्ध और निर्भीक साधक थे और अहिंसा ही उनका साधनासूत्र था। उनके मनमे न कुण्ठाओको स्थान प्राप्त था और न तनावोको। प्रथम दर्शनमे ही व्यक्ति उनके व्यक्तित्वसे प्रभावित हो जाता था। यही कारण है कि इन्द्रभूति गौतम जैसे तलस्पर्शी ज्ञानी पण्डित भी महावीरके दर्शनमात्रसे प्रभावित हुए और उनके शिष्य बन गये। ६१२ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा