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are तो क्या त्रिकालमे भी सम्भव नही है । अतएव न्याय-अन्याय, कर्त्तव्यअकर्तव्य, पुण्य-पाप आदिका विचार कर समाजको अहिंसक नीति द्वारा व्यवस्थित करना चाहिये । इसमे सन्देह नही कि महावीरकी समाज-व्यवस्था आजके युगमे भी उतनी ही उपयोगी है, जितनी उपयोगी उनके समयमे थी। महावीरने श्रमको जीवनका आवश्यक मूल्य बताया है। मानवीय मूल्योमे इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । समाज धन या सम्पत्तिसे पूर्ण सुसका अनुभव नही कर सकता है । पर नीति और अध्यात्मके द्वारा तृष्णा, स्वायं और द्वेषका अन्त हो सकता है ।
तोर्थंकर महावार और उनकी देशना ६०३