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________________ वर्तमानमे समाजमें नारीका स्थान बहुत निम्न श्रेणीका हो रहा है । आज नारी भोगेषणाकी पूर्तिका साधन मात्र रह गयी है । न उसे अध्ययन कर आत्मविकासके अवसर प्राप्त हैं और न वह धर्म एव समाजके क्षेत्रमे आगे ही आ सकती है। दासीके रूपमे नारीको जीवन यापन करना पडता है, उसके साथ होनेवाले सामाजिक दुर्व्यवहार प्रत्येक विचारशील व्यक्तिको खटकते हैं। नारीसमाजको देखनेसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे युगयुगान्तरसे इनकी आत्मा ही खरीद ली गयी है। अनमेल-विवाहने नारीको स्थितिको और गिरा दिया है। सामन्तयुगसे प्रभावित रहनेके कारण आज दहेज लेना-देना बड़प्पनका सूचक समझा जाता है । आज नारीका स्वतन्त्र व्यक्तित्व नही रहा है, पुरुषके व्यक्तित्वमे हो उसका व्यक्तित्व मिल गया है । अत इस दयनीय स्थितिको उन्नत बनाना अत्यावश्यक है। यह भूलना न होगा कि नारी भी मनुष्य है और उसको भी अपनी उन्नतिका पूरा अधिकार प्राप्त है। ____ वर्तमान समाजने नारी और शुद्रके लिये वेदाध्ययन वर्जित किया है। यदि कदाचित् ये दोनो वर्ग किसोप्रकार वेदके शब्दोको सुन ले, तो इनके कानमे शोशा गर्म कर डाल देना चाहिये। ऐसे निर्दयता एव क्रूरतापूर्ण व्यवहार समाजके लिये कभी भी उचित नही है। नारी भी पुरुषके समान धर्मसाधन, कर्तव्यपालन आदि समाजके कार्योंको पूर्णतया कर सकती है। अतएव वत्तंमानमे समाज-गठनके लिये लिंग-भेद, वर्ग-भेद, जाति-भेद, धन-भेदके भावको दूर करना परमावश्यक है । नारीको सभो प्रकारके सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार प्राप्त होने चाहिये । भेद-भावकी खाई समाजको सम घरातलपर प्रतिष्ठित नही कर सकती है। नर-नारी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी मनुष्य है और सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता है। जो इनमे भेद-भाव उत्पन्न करते हैं, वे सामाजिक सिद्धान्तोके प्रतिरोधी है । अत समाजमे शान्तिसुखव्यवस्था स्थापित करनेके लिये मानवमात्रको समानताका अधिकार प्राप्त होना चाहिये। तीर्थकर महावीरको समाजव्यवस्थाको आधुनिक उपयोगिता तीर्थंकर महावीर द्वारा प्रतिपादित समाज-व्यवस्था आधुनिक भारतमे भी उपयोगी है। महावीरने नारीको जो उच्च स्थान प्रदान किया, आजके सविधानने भी नारीको वही स्थान दिया है। वर्गभेद और जाति-भेदके विषको दूर करने के लिये महावोरने अपनी पीयूष-वाणी द्वारा सम.जको उद्बोधित किया । उनकी समाज-व्यवस्था भी कर्मकाण्ड, लिंग, जाति, वर्ग आदि भेदोसे मुक्त थी । इनकी ६०० तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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