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लम्बित हैं । सामाजिक सस्थाओमे निम्नलिखित गुण भर विशेषताएँ पायी जाती हैं
१ सामाजिक सस्थाएं प्रारम्भिक आवश्यकताओ की पूर्तिका साधन होती हैं । २ सामाजिक सस्थाओ द्वारा सामाजिक नियन्त्रणका कार्य सम्पन्न होता है । ३ सामाजिक अर्हाओ और प्रजातिक व्यवहारोका सम्पादन सामाजिक सस्थाओ द्वारा सम्भव है ।
४ अनुशासन और आदर्शको रक्षा इन्ही के द्वारा होती है ।
५. इनका कोई निश्चित उद्देश्य होता है ।
६ नैतिक आदर्श और व्यवहारोका सम्पादन इन्हीके द्वारा होता है ।
७• सामाजिक सस्थाए ँ ऐसे बन्धन हैं, जिनसे समाज मनुष्योको सामूहिक रूपसे अपनो संस्कृतिके अनुरूप व्यवहार करनेके लिये बाध्य कर देता है, अत सामाजिक सस्थामा के आदर्श और धारणाएं होती हैं, जिन्हे समाज अपनी सस्कृतिको रक्षा के लिये आवश्यक मानता है ।
८ सामाजिक सस्थाओका सचालन आचार सहिताओके आधारपर होता है । ९. प्रत्येक धर्म सम्प्रदायकी आवार सहिता भिन्न होती है । अत. सामाजिक सस्थाओका रूपगठन भी भिन्न धरातलपर सम्पन्न होता है ।
यो तो सामाजिक सस्थाएं अनेक हो सकती हैं, पर आध्यात्मिक चतना और लोक-जीवनके सम्पादनके लिये जिन सामाजिक सस्थाओकी आवश्यकता है, वे निम्नलिखित हैं
१. चतुर्विव सघ सस्था
२. आश्रम - सस्या ३ विवाह सस्था
४. कुल-संस्था
५ सस्कार सस्था
६ परिवार - सस्था
७ पुरुषार्थ-सस्था
८ चैत्यालय -सस्था
९ गुणकर्माधारपर प्रतिष्ठित वर्णजातिसस्था
इन सस्थाओ के सम्बन्धमे विशेष विवेचन करनेकी आश्यकता नही है । नामसे ही इनका स्वरूप स्पष्ट है ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ५९९