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जागरण भी आत्मविश्वाससे होता है । आत्मस्वार्थसे किया गया कार्य अभ्युदयका साधक नही हो सकता ।
वस्तुत: पति-पत्नी, पिता-पुत्रका निकटतम सूत्र विश्वासके धागोसे जुडा हुआ है । जब परिवारके बीच सशय उत्पन्न हो जाता है, मनमे अविश्वास जग जाता है तो वे एक दूसरे की जानके ग्राहक बन जाते हैं । यदि साथमे रहते भी हे, तो शत्रुतुल्य | घर, परिवार, समाज राष्ट्रका हराभरा उपवन अविश्वासके कारण धूलिसात् हो जाता है । आवश्वासका वातावरण पारिवारिक जीवनको दिशाहीन और गतिहीन बना देता है । जीवन अस्त-व्यस्त-सा हो जाता है ।
जब तक परिवार और समाजमे अविश्वास या सशयका भाव बना रहेगा, तब तक इनकी प्रगति नही हो सकती है । जीवन, भविष्य, परिवार एव समाजके यथार्थ विकास पारस्परिक विश्वास द्वारा हो सभव हैं। मानव-जीवन कोट- पतगके समान अविश्वासको भूमिपर रंगने के लिए नही है । अत. आस्थाके अनन्त गगनमे विचरण करनेका प्रयास करना चाहिए ।
परिवारकी पतवारका आधार समस्त सदस्योका पारस्परिक विश्वास ही है । उदारताके अभाव मे सकोर्णता जन्म लेती है और इसीसे अविश्वास उत्पन्न होता है । परिवारको आर्थिक सुदृढता, धार्मिक क्रियाकलाप और सामाजिक चेतना आस्था एव विश्वाससे ही सम्बद्ध हैं । जीवनको उपामे मनोविनोदके रग, उत्सवोके विलास और लालित्यकी कलियाँ विश्वासके बलपर खिलती है।
विश्वासकी भावना दो भागोमे विभाजित है - (१) आत्मस्थ और (२) परस्थ । आत्मस्थ भावनामे आत्माभिव्यक्तिका प्रवल वेग है । वह भावना अभिलाषाओ और इच्छाओमे उमडकर गन्तव्य दिशामे अपने आदर्शको पूर्ति कर लेती है । भावनाका यह प्रवाह उदारता उत्पन्न करता है तथा आस्थावश स्वकथन या स्वव्यवहारको सबल बनाता हैं । परस्य भावना अधिक सामाजिक है, यह विश्वासकी देवी सम्पत्ति है और कार्यकारणकी श्रृंखलासे निबद्ध रहती है । परिवार या समाजकी नीव परस्थ विश्वासभावनापर ही अवलम्बित है । समाज और परिवारको विविध परिस्थितियोमे पारस्परिक विश्वास चिन्तन और व्यवहारको परिष्कृत करता है, जिसके फलस्वरूप समाज एव परिवारमे कल्याणका सृजन होता है ।
सेवा-भावना
सेवाशब्द / सेव - सेवने + टाप्से निष्पन्न है । दुखो, रोगो, वृद्ध, अशक्त एव गुणियोको सान्त्वना देना, शरीर, वचन और मनसे परिचर्या करना तथा उनके प्रति आदरभाव रखना सेवा है । सेवाभावसे हो व्यक्तिका व्यावहारिक
५५६ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा