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पालन करते हए श्रावक जब दिनमे मन, वचन और कायसे स्त्रीमात्रका त्याग करता है तब उसके दिवामैथुनत्याग-प्रतिमा कहलाती है। पूर्वोक्त पांच प्रतिमामे इन्द्रियमदकारक वस्तुओके खानपानका त्यागकर इन्द्रियोको सयर करनेकी चेष्टा की गई है । इस छठी प्रतिमामे दिनमे कामभोगका त्यार कराकर मनुष्यको कामभोगको लालसाको रात्रिके लिये ही सीमित कर दिय गया है।
इस प्रतिमाको रात्रिभुक्तिविरति भी कहा जाता है। दयालुचित्त थावर रात्रिमे खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय इन चारो ही प्रकारके भोजनोको मन वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनासे त्याग करता है।
७. ब्रह्मचर्यप्रतिमा-पूर्वोक्त छह प्रतिमाओमे विहित सयमके अभ्याससे मन, वचन, कायकी प्रवृत्ति द्वारा स्त्रीमानके सेवनका त्याग करना सप्तम् ब्रह्मचर्यप्रतिमा है। छठी प्रतिमामे दिवामेथुनका त्याग कराया गया है और इस सप्तम प्रतिमामे रात्रिमे भी मैथुनका त्याग विहित है ।
आत्मशक्तिको केन्द्रित करनेके लिये ब्रह्मचर्य एक अपूर्व वस्तु है। यह ब्रह्मचर्यका अर्थ शारीरिक कागभोगोसे निवृत्ति करना ही नही है अपित पञ्चेन्द्रियोके विषयभोगोका त्याग करना है।
८ आरम्भत्यागप्रतिमा-पूर्वको सात प्रतिमाओका पालन करनेवाल श्रावक जव आजीविकाके साधन कृपि, व्यापार एव नौकरी आदिके करने-कराने का त्याग कर देता है तो वह आरम्भत्यागप्रतिमावाला कहलाता है। ब्रह्मचर्य प्रतिमामे कौटुम्बिक जीवनको मर्यादित कर दिया जाता है और इस प्रतिमा सुयोग्य सतानको दायित्व मौंपकर उससे विरत हो जाता है। ____९ परिगृहत्यागप्रतिमा-पूर्वोक्त आठ प्रतिमाओके आचारका पालन करनेके साथ-साथ भूमि, गह आदिसे अपना स्वत्व छोडना परिगृहत्याग प्रतिमा है। अष्टम प्रतिमामे अपना उद्योग-धन्धा पुत्रोको सुपुर्दकर सम्पत्ति अपने ही अधिकारमे रखता है। पर इस प्रतिमामे उसका भी त्याग कर देता है।
१० अनुमतित्यागप्रतिमा-पूर्वकी नौ प्रतिमाओके आचारका अभ्यास हो जानेके पश्चात् घरके किसी भी कारोबारमे किसी भी प्रकारको अनुमति न देना अनुमतित्यागप्रतिमा है। इस प्रतिमाका धारी श्रावक घरमे न रहकर मन्दिर या चैत्यालयमे निवास करने लगता है और अपना समय स्वाध्याय
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना . ५२