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________________ प्रशम प्रशमगुण आत्माके कषाय या विकारोके उपशम होनेपर उत्पन्न होता है। राग या द्वेष जो आत्माके सबसे बडे शत्रु है, जिनके कारण इग जीवको नाना प्रकारको इष्टानिष्ट कल्पनाएं होती रहती है, जिससे ससारके पदार्थोको सुखमय समझा जाता है, वे सब समाप्त हो जाते है। प्रशभगुण आत्माको निर्मल वनाता है, चित्तके विकारोको दूर करता है और मनको विकल्पोंसे रहित वनाता है। प्रशमगुण द्वारा जोवको विकृत अवस्था दूर होती है और आत्माको निर्मल प्रवृत्ति जागृत होती है। संवेग ___ ससारसे भीतरूप परिणामोका होना संवेग है । इस गुणके उत्पन्न होनेसे आत्मामे शुद्धि उत्पन्न होती है । जो व्यक्ति इस संसारमै रहता हुआ यह विचार करता है कि आयुके समाप्त होनेपर मुझे अन्य गतिको प्राप्त करना है और यह ससारका चक्र निरन्तर चलता रहेगा, यह आत्मा अकेला ही राग-द्वेष, मोहके कारण उत्पन्न होनेवाली कर्म-पर्यायोका भोक्ता है। अतएव आत्मोत्यानके लिये सदैव सचेष्ट रहना अत्यावश्यक है। जब तक संसारसे सवेग उत्पन्न नही होगा, तब तक अहकार और ममकारकी परिणति दूर नही हो सकती है। ज्ञानदर्शनमय और संसारके समस्त विकारोंसे रहित आध्यात्मिक मुखका भण्डार यह आत्मतत्त्व ही है और इसको उपलब्धि सम्यक्त्वके द्वारा होती है। अनुकम्पा समस्त जीवोमे दयाभाव रखना अनुकम्पा गुण है । व्यवहारमे धर्मका लक्षण जीवरक्षा है । जीवरक्षासे सभी प्रकारके पापोका निरोध होता है। दयाके समान कोई भी धर्म नही है । अत पहले आत्म-स्वरूपको अवगत करना और तत्पश्चात् जीव-दयामे प्रवृत्त होना धर्म है। जिस प्रकार हमे अपनी आत्मा प्रिय है उसी प्रकार अन्य प्राणियोको भी प्रिय है । जो व्यवहार हमे अरुचिकर प्रतीत होता है, वह दूसरे प्राणियोको भी अरुचिकर प्रतीत होता होगा। अत: समस्त परिस्थितियोमे अपनेको देखनेसे पापोका निरोध तो होता ही है, साथ ही अनुकम्पाकी भी प्रवृत्ति जागृत होती है । अनुकम्पा या दयाके आठ भेद है १. द्रव्यदया-अपने समान अन्य प्राणियोका भी पूरा ध्यान रखना और उनके साथ अहिंसक व्यवहार करना। २ भावदया-अन्य प्राणियोको अशुभ कार्य करते हुए देखकर अनुकम्पा बुद्धिसे उपदेश देना। तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ४९९
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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