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जैन पूजा पाठ संप्रह
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बौस तीर्थंकर पुजा-भाषा दीप अढ़ाई मेरु पन, अब तीर्थंकर बीस । तिन सबकी पूजा करूँ, मन वच तन धरि शीस ॥ ॐ ही विद्यमानविंशतितीर्थकरा ! अत्र अवतर अवतर सौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरा ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ ठ स्थापन ।
हों विद्यमानविंशतितीर्थकरा. ! अन मम सन्निहितो भवतभवत वषट् सन्निधिकरणम् । इन्द्र-फणींद्र-नरेन्द्र-वंद्य, पद निर्मल धारी। शोभनीक संसार, सारगुण हैं अविकारी ॥ क्षोरोदधि सम नीरसों (हो), पूजौं तृषा निवार । सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेह मंझार ॥ श्रीजिनराज हो, भवतारण तरण जिहाज ॥१॥ ॐहीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल० ॥ १॥ तीन लोकके जीव, पाप आताप सताये। तिनकों साता दाता, शीतल वचन सुहाये ॥ बावन चंदन लौं जजू (हो) भ्रमन तपन निरवार ॥ती. ॐ हीं विद्यमानविंशतितीयंकरेभ्यो ससारतापविनाशनाय चन्दन० ॥ २ ॥ यह संसार अपार महासागर जिनस्वामी। ताते तारे बड़ी भक्ति-नौका जगनाली ॥ तंदुल अमल सुगंधसों (हो) पूजों तुम गुणसार ॥ सी० ॐहीं विद्यमानविंशतितीर्थ करेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान्० ॥ ३ ॥