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________________ जैन पूजा पाठ संग्रह उस पावन नौका पर लाखों, प्राणी भव-वारिधि तिरते हैं। हे गुरुवर ! शाश्वत सुख-दर्शक यह नग्न स्वरूप तुम्हारा है, जग की नश्वरता का सच्चा, दिग्दर्शन करने वाला है। जब जग विषयोंमें रच पचकर, गाफिल निद्रामें सोता हो। अथवा वह शिव के निष्कंटक, पथ में विष-कंटक बोता हो। हो अर्द्ध निशा का सन्नाटा, वन में वनचारी चरते हों। 'तब शान्त निराकुल मानस, तत्वों का चिन्तन करते हों। करते तपशैल नदी तट पर, तरु तल वर्षा की झड़ियों में। समता रसपान किया करते, सुख-दुख दोनों की घड़ियोंमें। अन्तर ज्वाला हरती वाणी, मानों झड़ती हों फुलझड़ियाँ। भवबन्धन तड़-तड़ टूट पड़े, खिल जावें अन्तर की कलियाँ। तुमसादानी क्या कोई हो, जगको दे दी जगकी निधियाँ ॥ दिन रात लुटाया करते हो, सम-शम की अविनश्वर मणियाँ। हे निर्मल देव ! तुम्हें प्रणाम, हेज्ञान दीप आगम ! प्रणाम ! हेशान्ति त्यागके मूर्तिमान,शिव पथ-पंथी गुरुवर ! प्रणाम। ॐ ही देवशास्त्रगुरुन्योऽनर्धपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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