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दशम परिच्छेद
धर्म और आचार-मीमांसा जोवन और धर्म
जीवन जड़ नही, गतिमान है । अत. आवश्यक है कि उस गतिको उचित ढंगसे इस भांति नियमित और नियन्त्रित किया जाय कि जीवनका अन्तिम लक्ष्य प्राप्त हो सके। जीवनका उद्देश्य केवल जीना नहीं है, बल्कि इस रूपमे जीवन-यापन करना है कि इस जीवनके पश्चात् जन्म और मरणके चक्रसे छुटकारा मिल सके । आज सुविचारित क्रमबद्ध और व्यवस्थित जीवन-यापनकी अत्यन्त आवश्यकता है। धर्माचरण व्यक्तिको लौकिक और पारलौकिक सुखप्राप्तिके साथ आकुलता और व्याकुलतासे मुक्त करता है । वह जीवन कदापि उपादेय नही, जिसमे भोगके लिए भौतिक वस्तुओकी प्रचुरता समवेत की जाय । जिस व्यक्तिके जीवनमे भोगोका बाहल्य रहता है और त्यागवृत्तिकी कमी रहती है, वह व्यक्ति अपने जीवनमें सुखका अनुभव नही कर सकता । भोग जीवनका
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