SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पूजा पाठ मप्रह जयमाला भववनमें जीभर घूलचुका, कण-कणको जीभर-भर देखा। सृग-लम-मृग-तृष्णाके पीछे,सुझको न मिली सुखको रेखा॥ रुठे जम के सपने सारे, झूठी मत की लब आशाये। तन-जीवन-यौवन अस्थिर है, क्षण भंगुर पल में मुरझाए । सम्राट महावल सेनाली, उस क्षण को टाल सकेगा क्या ? अशरण मृत कायाने हर्षित, निज जीवन डाल सकेगाक्या ।। संसार महा दुख लागरके प्रसु दुख मय सुख-आमालों में। सुझकोल लिला सुख क्षणभर भी,कंचनकामिनि-प्रासादोंल।। में एकाकी एकत्व लिये, एकत्व लिये सब ही आते । तन धन को साथी ललना था, पर ये भी छोड़ चले जाते॥ मेरे न हुये थे मैं इनसे, अति भिन्न अखंड निराला हूँ। निज में पर ले अन्यत्व लिये, निज लम रल पीनेवाला हूँ॥ 'जिलके शृंगारों में लेरा, यह महंगा जीवन घुल जाता। अत्यन्त अशुदि जड़ कायाले, इस चेतल का कैसा नाता॥ दिन रात शुभाशुभ भावों से, मेरा व्यापार चला करता। मानव वाणी और काया से, आस्त्रब का द्वार खुला रहता। शुभ और अशुल की ज्वाला ले, झुलसा है मेरा अन्तःस्थल ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy