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कर्तव्य सम्पादन विधायक तत्त्व माना जाता है । सत्यके आधार पर सम्पादित बाचास्यवहार व्यक्ति और समाज दोनोके लिए हितकर होते हैं। ___ मनुष्य जब लोभ-लालचमे फंस जाता है, वासनाके विपसे मूच्छित हो जाता है जोर अपने जीवनक महत्वको भूल जाता है, उस जीवनकी पवित्रताका स्मरण नहीं रहता, तब उमका विवेक समाप्त हो जाता है और वह यह सोच नहीं पाता कि उसका जन्म ससारसे कुछ लेनेके लिए नही हुआ है बल्कि कुछ देनेके लिए हमा है। जो कुछ प्राप्त हुमा है, वह अधिकार है और जो समाजके प्रति नपित किया जाता है यह कर्तव्य है। मनुष्यकी इस प्रकारको मनोवृत्ति हो उसके मनको विगाल एव विराट् बनाती है। जिसके मनमे ऐसी उदारभावना रहती है यहो अपने कर्तव्य-सम्पादन द्वारा परिवार और समाजको सुखी, समृद्ध बनाता है। महमार, क्रोध, लोभ और मायाका विष सत्याचरण द्वारा दूर होता है। जिगका जीवन सत्याचरणमे घुलमिल गया है, वही निश्छल और मच्ने व्यपहारदारा क्षुद्रतामोको दूर करता है।
सहजभावसे अपने कर्तव्यको निभानेवाला व्यक्ति केवल अपने आपको देखता है। उसकी दष्टि दूगरों की ओर नहीं जाती। वह अपनी निन्दा और स्तुतिको परवाह नहीं करता, पर भद्रता, सरलता और एकरूपताको छोडता भो नही। वास्तवमै यदि मनुष्य अपने व्यवहारको उदार और परिष्कृत बना ले, तो उसे सघर्ष और तनावोमे टकराना न पडे । जीवनमे सघर्ष, तनाव और कुण्ठाएं अमत्याचरणके कारण ही उत्पन्न होती हैं। प्रगतिके प्रति सम्मान
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुमार प्रत्येक वस्तुमे निरन्तर परिवर्तन होता है। परिवर्तन प्रगतिस्प भी सम्भव है और अप्रगतिरूप भी। जिस व्यक्तिके विचारोंमें उदारता और व्यवहारमे सत्यनिष्ठा समाहित है, वह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कर्तव्योका हृदयसे पालन करता है। सकटके समय व्यक्तिको किस प्रकारका आचरण करना चाहिए और परिस्थिति एव वातावरण द्वारा प्रादुर्भूत प्रगतियोको किस रूपमे ग्रहण करना चाहिए, यह भी कर्तव्यमार्गके अन्तर्गत है।
एकाकी मनुष्यको धारणा निसन्देह कल्पनामात्र है। अत कर्तव्योका महत्त्व नैतिक और सामाजिक दष्टिसे कदापि कम नही है। कर्तव्योका सवध अधिकारोंके समान सामाजिक विकाससे भी है। कर्तव्योकी विशेषता जीवनके दो मुख्य अगोंसे सम्बद्ध है
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना • ५६५